कोई ले चले स्कूल फिर एक बार

कोई ले चले स्कूल फिर एक बार

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Shweta Gupta
Shweta Gupta 11 Jun, 2023 | 1 min read

जब भी अपनी बेटी को स्कूल के लिए तैयार करती हूं, उससे रोज एक ही बात कहती हूं,

ये समय न आएगा लौटकर बेटा, जा जीले अपनी जिंदगी के सबसे सुनहरे पलों को तू। 

पता है.. वो भी वैसे ही रोती है जैसे मैं स्कूल जाते वक़्त रोती थी,

मम्मी बस 5 मिनट और सोने दो, यही मैं भी कहती रहती थी।

क्या दिया है टिफिन में, यही सवाल मेरा भी था, सब्जी का नाम सुनते ही, लेती थी मैं भी नाक चड्ढा।

आज स्कूल नहीं मन जाने का, मम्मी को मैं भी पटा ती थी,

पेट दर्द कभी ज़ुखाम का बहाना बनती थी।

पर स्कूल के गेट के अंदर घुसते ही मानो सब पलट जाता था,

क्लास में दोस्तों संग मस्ती का महौल ही मस्ताना था।

टीचर के पसंदीदा बनने की होड़ में खूब पापड़ बेले थे,

लेकिन पैरेंट टीचर मीटिंग में मैम ने सब भेद खोले थे।

पीरियड्स के बीच में टिफिन चोरी चोरी खाना सबसे प्यारी गलती लगती थी,

क्या भेजा है मम्मी ने, पूरी क्लास में खुशबू फेलती थी।

धूप में असेम्बली में तपते थे, गेम्स वाले सर से भी खूब डरते थे, होमवर्क न करने पर डंडे भी पड़ते थे, फ्री पीरियड मिल जाता तो जेल से छूटे कैदिओं के तरह झूमते थे।

स्टाइल मारने के लिए स्कर्ट कभी ऊपर और सॉक्स निचे करती थी,

घर आकर मम्मी से कस कर डाँट पड़ती थी।

कम नंबर की मिली मार्कशीट को छुपाए रखते थी, कभी कभी पापा के साइन कर माम् को दे देती थी।

अब तो बस...दिल कहता है मुझे कुछ धूप दो मुझे कुछ बारिश दो..

स्कूल जकार वो शैतानियां दोहराणे की ख़्वाहिश है,

बैग को टाइम टेबल की किताबों से भरने के ख्वाइश है,

फिर उन्हीं बेंचों पर बैठने की ख़्वाहिश है,

टीचर्स का मजाक उड़ा वही मस्ती करने की ख्वाहिश है,

आखिरी सीट पर फ्लेम्स खेलने की ख़्वाहिश है, एक बार फिर क्लास के मॉनिटर बनने की ख्वाहिश है,

क्लास के बहार हाथ ऊपर कर खड़ा होने की ख़्वाहिश है,

स्टेज पर अपना हुनर दिखा एनुअल डे में भाग लेने की ख़्वाहिश है,

वो रिंग टिंग टिंग स्कूल की घंटी सुनने की ख़्वाहिश है,

लाइन लगा केमिस्ट्री बायोलॉजी लैब में प्रयोग करने की ख़्वाहिश है,

वो पानी के कूलर पर दोस्तों संग गप्पें मारने की ख़्वाहिश है,

स्कूल के कैंटीन में वो 5 रुपे का समोसा खाने की ख्वाहिश है,

फिर से हाथ को सियाही से रंगने की ख़्वाहिश है, क्लास टेस्ट में चीटिंग से पास होने की ख्वाहिश है,

बडे वाले दिन बच्चों को टॉफ़ी बांटने की ख़्वाहिश है,

स्कूल से लौटकर मम्मी के हाथ का रूहअफजा पीने की ख्वाहिश है,

फेयरवेल की एक बार फिर तैयारी करने की ख्वाहिश है,

जिस स्कूल से आजादी चाहिए थी तब, पर अब वही स्कूल जाने की मेरी ख्वाहिश है। 

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