शादी से पहले लड़की के मन में प्रेम की लहरें उमड़ती हैं,
मिलेगा उसे अपने सपनों का राजकुमार, यहीं इच्छा उसकी अंदर चांद सी चमकती है।
हलचल रहती है उसके मन में कि शादी जैसे बंधन को वो कैसे निभाएगी,
सोचती रहती दिन भर की भाई की छेदखानी और सहेलियों की अठखेलियाँ बहुत याद आएंगी।
अपने छोटे से मन में वो बड़े बड़े ख्वाब लेकर चलती है,
नये आशियाने को ऐसे सजायेगी, वैसे सवरेगी यही सोचती है।
पर शादी के बाद उसके मन की व्यथा अमावस्या की रात सी होती है,
अकेलेपन और ज़िम्मेदारियों का अँधेरा घेर लेता है उसको और अपनी पहचान ही वो भूल जाती है। जिस घर को अपना बनाने वो अपना घर छोड़ कर आई थी,
उसके घर में अपना छोटा सा कोना सजने के लिए वो ढूंढती रहती है.
यही सोचती रहती है कि उसका पति हर कदम उसका साथ दे,
और जहां जरूरी हो कभी ना ना कहे.
जानते हुए कि उसका पति बेटा है उस घर का, पर अपने मन को बार बार ना मारकर, वो उसका पति भी है, ये बार बार याद दिलाएगी।
उसका मन उसकी भावनाओं के साथ मोल भाव भी करता है, कभी असलियत से जुस्तजू भी करता है,
लडखड़ाता है जब, थोड़ा लिहाज़ भी रख जाता है। वो कभी अपना मन हल्का करने के लिए रोयेगी, कभी घण्टों चुप्पी भी साध लेगी,
समझ लेगा कोई उसकी ख्वाहिशों को भी, वो अपने मन को एक बार फिर यहीं कह कर मनाएगी।
उसका मन तो परतों से ढका है जिसे खोलकर देखना मुश्किल है नामुमकिन नहीं,
उसके मन की व्यथा तो उसकी आँखों में झलकती है जिसे पढ़ने की कोशिश करोगे तो पलकें भी झपकेंगी नहीं।
आप कभी नहीं जान सकते कि वह क्या कर रही है जब तक आप उसकी जगह पर कदम नहीं रखते....
एक स्त्री इतना कुछ कैद रखती है, बेड़ियों से अपनी ही भावनाओं को रोके रखती है वो,
उसका मन तो कभी सहनशीलता का सागर है तो कभी क्रोध का सैलाब है वो।..
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