एक माँ की यादों का पिटारा अंगिनत ख़ूबसूरत पलों से भरा होता है,
बस कोई कहे 'तुम्हें याद है', और उसका मन खुशी से न समाता है।
आज मैं ऐसी ही एक प्यारी सी याद से आपको रुबरू करना चाहती हूं!
एक मां हूं, तो घर में शोर तो अच्छा लगता है,
पर घर में जब बच्चा हो और शांति का माहौल हो तो उससे डर लगता है।
एक दिन मैं चुप चाप अपनी बेटी के कमरे में गई, वो बैठी कोने में और उसे देखकर मैं दंग रहगई।
हसी भी छूट रही थी, गुस्सा भी आ रहा था,
पर उसकी मासूम झलक ने, मेरा दिल छू लिया था। मेरी गुलाबी लिपस्टिक लिए वो वो खुद को मैं समझ रही थी, मेरा दुपट्टा ओढे, खुद को बड़ा समझने लगी थी।
आईने के आगे, मेरी नकल बखूबी उतार रही थी, अपने पापा को साजिश में कर संग, मेरी हंसी ठिठोली हो रही थी।
लेकिन इन बाप बेटी का ये अनोखा नाटक एक खूबसूरत याद की तरह मेरे दिल ओ दिमाग में छप गया,
कर याद अपने बचपन के दिन, मेरा भी मन भर आया।
उठाया फोन, मिलाया नंबर अपनी मां को,
बताकर उनकी शैतान नातिन की हरकतें, खूब हसाया मैंने उनको।
वो कहती है 'बेटा तुझे याद है, तेरा भी बचपन ऐसा ही मुझे लुभाता था', कब बड़ी हो गई, मुझे पता ही न चला।
काश उस कीमती याद को मैं भी तुझे आज दिखा पाती, तेरी बेटी बिलकुल तेरा प्रतिबिम्ब है, तुझे बताता पाती।
मां ने कहा, कैद करले इस याद को अपने फोन में, दिखआइओ जब बड़ी होगी मेरी नातिन, और फिर हसना तुम इसी बात पे।
फिर मुड़कर मैंने देखा जब उसको, हंसी के आंसू थिरकने लगे,
छूटा मेरा यादों का फ्लैशबैक, मम्मी, जब पुकारा उसने।
जब भी मैं अपनी गुड़िया को देखती हूं, अपनी बाहों का हार उसके गले में डाल देती हूं,
उसकी बिन लगाम बातें सुनकर मैं यादों का पितारा कुछ देर के लिए बंद कर देती हूं।
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