मैं कोई ऐसी ग़ज़ल लिखूं की शब्द चाशनी से मीठी लगे और एक सुरीला नगमा बन जाए।
मैं कोई ऐसी ग़ज़ल लिखू की झूम उठे श्रोता सारे, सबके चेहरे पर मैं एक खूबसूरत सी मुस्कान दे सकू।
मैं कोई ऐसी ग़ज़ल लिखू की महफिल सारी हो जाए थिरकने पर मजबूर, और समां वहीं ठहर कर हो जाए चूर चूर।
मैं कोई ऐसी ग़ज़ल लिखू की जैसे दिसंबर की सर्दी में गर्मी के पके आम को खाने की लालसा होती है, उसी चाहत से मेरी गजल सुनने का भी दोबारा मन करे।
मैं कोई ऐसी ग़ज़ल लिखू की अश्रु भर आए उनकी भी आंखों में और वो फिर एक बार हमारे पास दौड़े चले आएं।
मैं कोई ऐसी ग़ज़ल लिखू की लोगों के दिल मेरे आईने जैसे बिखरे अंतरमन की व्यथा आसनी से समझ जाए।
मैं कोई ऐसी ग़ज़ल लिखू की मेरी सदगी भी उसमें छलके और तेजी भी नजर आए,
रूह छुजाए मेरे भाव और उनके अशांत मन को सुकून आजाये।
मैं कोई ऐसी ग़ज़ल लिखू की बारिश में भीगी मिट्टी जैसी खुशबू आए , ओस की ठंडक सी अनुभूति हो और प्यार में रम जाने को दिल कर जाए।
मैं कोई ऐसी ग़ज़ल लिखू की चाय की पहली चुस्की सी मीठी लगे वो, उसमें गिरते हुए बिस्किट को बचाने जैसी खुशी मिल जाए उनको।
मैं कोई ऐसी ग़ज़ल लिखू की तालियों की वर्षा भीगो दे मुझको, और मेरे शब्दों में नई जान डालकर, मैं एक गजल और लिख दू.
Shweta Gupta
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