खुद से ज्यादा उसकी बातें करता है,
इक लड़का जो इक लड़की पर मरता है,
हरदम चुप रहना भी इक कमजोरी है,
हक़ की खातिर खुद ही लड़ना पड़ता है,
ख़ामोशी भी मुझसे बाते करती है,
उसको जब सूनेपन से डर लगता है,
इक फ़कीर को कम्बल देकर तो देखो,
जो सड़कों पर ठिठुर ठंड से मरता है,
मंजिल भी अक्सर उसको ही मिलती है,
बिन रुके,थके जो केवल चलता रहता है,
-©® शिवांकित तिवारी "शिवा"
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