वर्तमान परिदृश्य में कोरोना का कहर और पृथ्वी की मौजूदा स्थिति :-
पृथ्वी दिवस की कल्पना में हम उस दुनिया का ख्वाब साकार होना देखते हैं जहां स्वच्छ हवा और पानी प्रदूषण से मुक्त होगा।
समाज स्वस्थ और खुशहाल होगा। नदियाँ हमारी अस्मिता बहाली के लिये मोहताज नहीं होगी। धरती रहने के काबिल होगी। मिट्टी, बीमारियाँ नहीं वरन सोना उगलेगी। सारी दुनिया के लिये 'पृथ्वी दिवस' रस्म अदायगी का नहीं अपितु उपलब्धियों का प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने तथा आने वाली पीढ़ियों को इस धरा की महत्वता एवं महानता से परिचित करवायेगी।
वर्तमान परिदृश्य जिसमें संपूर्ण विश्व कोरोना नामक महामारी से जूझ रहा है समस्त मानवीय जातियों के जीवन पर संकट के बादल मंडरा रहे है। जानवरों के सरीखें समस्त देशवासी अपने - अपने घरों में बंद हैं। मगर
इन चुनौतियों के बीच एक बात सौ फ़ीसदी सच है कि विश्वव्यापी ये लॉकडाउन प्रकृति के लिए वरदान साबित हुआ है। वातावरण पूरी तरह से साफ़ हो चुका है. हालांकि ये तमाम कोशिशें कोरोना वायरस के संक्रमण को बढ़ने से रोकने के लिए हैं।
अभी लॉकडाउन की वजह से तमाम फ़ैक्ट्रियों पर ताले लगे हैं. यातायात के सारे साधन बंद हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अर्थव्यवस्था को भारी धक्का लगा है, करोड़ों लोग बेरोज़गार हुए हैं. शेयर बाज़ार में भारी गिरावट आ गई है। लेकिन अच्छी बात ये है कि कार्बन का उत्सर्जन रुक गया है जिससे भारत समेत कई देशों में पिछले साल की तुलना में प्रदूषण में 65 प्रतिशत तक कम हो गया है।
सड़कें खाली सुनसान तो हैं, मगर मंज़र में पूरी तरह साफ हो गया है। सड़क के किनारे लगे पौधे एकदम साफ़ और फूलों से गुलज़ार हो गये है। भारत देश की बड़ी नदियां जैसे यमुना,गंगा,कावेरी आदि तो इतनी साफ़ कि पूछिए ही मत।
कोरोना वायरस नामक वैश्विक महामारी ने ना जाने कितनों से उनके अपनों को हमेशा के लिए अलग कर दिया है। हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर इसका बहुत ही नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। ना जाने कितनों का रोज़गार ख़त्म हुआ है। अर्थव्यवस्था पटरी पर कब लौटेगी ये भी कहना मुश्किल है।
लेकिन इस महामारी ने एक बात स्पष्ट कर दी कि मुश्किल घड़ी में सारी दुनिया यदि एक साथ खड़ी होकर एक दूसरे का साथ देने के लिए तैयार है, तो फिर क्या यही जज़्बा और इच्छा शक्ति हम पर्यावरण को बचाने अपनी इस धरा को बचाने के लिए व्यक्त नहीं कर सकते?उम्मीद करते है इस समय का अंधकार हम स्वच्छ और हरे-भरे वातारण से पूरी तरह मिटा देगे।
और अब समस्त भारतवासी यह संकल्प लेते है कि इस भारत भूमि को और प्रकृति को सुरक्षित और स्वच्छ रखेगे।
-©® शिवांकित तिवारी "शिवा"
(युवा कवि एवं लेखक)
सतना, मध्यप्रदेश
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