पछतावा

मानसिक बीमारी से पीड़ित अनुजा की दीदी की कहानी।

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Savita vishal patel
Savita vishal patel 27 Jul, 2020 | 1 min read
Story Mental health

हम लोगो ने कई बार बाहर रोड़ पर और मार्केट में अजीब से व्यवहार करने करने वाले लोगो (ठीक से बोल न पाना खुद की सफाई और सुरक्षा का ध्यान न रखना आदि) को तो देखा ही होगा।कई बार ये लोग हमारे घर भी आते है भीख मांगने।कभी सोचा है ये लोग कौन होते है और इनका ये हाल कैसे हो जाता है?ये लोग हमारी ही तरह सामान्य परिवार में जन्म लेते है पर कुछ जन्म से पहले से या कुछ जन्म के बाद कुछ विशेष कारणों से इनकी ऐसी हालत हो जाती है।सबसे ज्यादा बुरा इनके साथ तब होता है पर इनके अपने ही परिवार वाले इन्हें अपनाने से डरते है समाज वालो से इन्हें छुपाते है कई बार इनके परिवार वाले इन्हें अपने ही घर मे चोरो की तरह रखते है और अपने ही घर से उन्हें निकाल देते है।ऐसा ही कुछ मेने भी देखा।


                 अभी पिछले संडे की ही बात हैं मैं मायके आई और मैने दो दिन बाद मेरी बेस्ट फ्रेंड अनुजा के घर जाने का प्लान बनाया में उसको कॉलेज के दिनों से जानती हूं और बहुत बार उसके घर भी जा चुकी हूं।मैंने सोचा उसको बिना बताए उसके घर चली जाती हूं उसको अच्छा लगेगा मैने ऐसा ही किया और उसके घर पहुँच गई।जैसे ही में उसके घर के अंदर गई वो और उसकी मम्मी दोनो मिल कर किसी को उस छोटे वाले कमरे में ले जा रहे थे जो हमेशा ही अंदर से बंद रहा करता था पर मै ठीक से देख नही पाई।जैसे ही मैंने पीछे से आवाज लगाई वो दोनों मुझे देख कर जैसे डर ही गये।अनुजा मेरे पास आ गई और उसकी मम्मी भी उस कमरे से बाहर आ गई।मैंने पूछा अनुजा कोई आया है क्या? अनुजा ने कहा नही कोई नही आया।तू ये सब छोड़ बता कब आई भोपाल? कैसी है ? जीजू कैसे है?जब उसने ऐसे सवालों की बरसात कर दी तो मैं भी सब भूल गई औऱ उससे बाते करने लगी।अनुजा की मम्मी को मार्केट जाना था इसलिए हम दोनों अकेले थे।कभी-कभी उस कमरे में किसी के होने की आहट आ रही थी।पहले मैने इग्नोर किया फिर उससे पूछ ही लिया अनुजा उधर कोई है क्या अनुजा ने बहुत ही कॉन्फिडेंस के साथ कहा अरे नही रे चूहा होगा बहुत है हमारे घर मे।मेरा मन तो हो रहा था कि एक बार खुद देख लू।फिर तो मेरा बातों में मन भी नही लग रहा था वह से लगातार आहट हो रही थी।मैं सिर्फ एक मोके की तलाश में थी।तभी अजुना के पापा का फ़ोन आ गया और नेटवर्क प्रॉब्लम के के कारण उसे छत पर जाना पड़ा।मुझे इससे अच्छा मौका नही मिलने वाला था तभी उस कमरे से एक फुटबॉल बाहर आई अब तो मैं और भी रुकने वाली नही थी मै सीधे वो कमरे में चली गई।पलंग के ऊपर एक लड़की बैठी थी जो कम से कम 25-26 साल की थी पर उसकी हरकते 10-11 साल के बच्चे के जैसी थी वो मुझे देख कर डर गई तभी पीछे से अनुजा आ गईं।अनुजा के पास कोई रास्ता नही था उसे सच बताना पड़ा उसका सच सुन कर मेरे होश उड़ गए अनुजा ने बताया कि ये उसकी बड़ी बहन है जो बचपन से ही ऐसी है उनका दिमाक बच्चों जैसा है।लोग मजाक न उड़ाए इसलिए हम लोग इन्हें घर मे ही रखते है।लेकिन अजुना में तेरे घर कितने बार आई हूं 7 सालो में आज तक ये मुझे क्यों नही दिखी।तुम हमेशा बता कर आती थी सविता तुम्हारे आने से पहले ही हम इन्हें कमरे में बंद कर दिया करते है आज तुम बिना बताए जा गईं इसलिए ऐसा हुआ।अनुजा बोली तुम प्लीज् किसी को बताना मत।मैंने कहा चल अब में चलती हूं।कल शाम को मिलते है मंदिर में और तुम दीदी को भी ले कर आना।ये क्या बोल रही हो सविता मैं ऐसा नही कर सकती लोग क्या कहेंगे सब को पता चल जयेगा।पता चल जयेगा तो क्या हुआ 25 साल उन्होंने कैदियों की तरह बिताए है जरा सोच कर देखो अगर लोगो को ये पता चलेगा कि तुमने अपने बड़ी बहन को सिर्फ इसलिए घर मे कैद कर के रखा है क्योंकि वो मानसिक रूप से ठीक नही है।कल तुम बड़ी दीदी को अपने साथ मंदिर ला रही हो बस।ऐसा कह कर में अपने घर आ गई।अगले दिन मंदिर में मैं इंतेजार कर रही थी मुझे भरोसा नही हुआ जब मैंने अनुजा और बड़ी दीदी को साथ देखा और दीदी की खुशी का भी कोई ठिकाना नही था।उन्होंने पहली बार बाहर की दुनिया देखी थी।अनुजा ने भी दीदी को इतना खुश कभी नही देखा था।अनुजा ने फैसला लिया कि अब से वह हर मुमकिन जगह दीदी को ले कर जयेगी और मम्मी - पापा से भी इस बारे में बात करेगी।अंदर ही अंदर अनुजा को अपने किये पर पछतावा भी था।


स्वरचित कहानी

सविता कुशवाहा

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