बुढ़ापे के कोऊ नही आ।

बुंदेलखंडी कविता।

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Savita vishal patel
Savita vishal patel 28 Jun, 2020 | 1 min read
Bundelkhandi

9 लड़का,10 नाती

बुढ़ापे के कोऊ नही आ


बड़ी बहू से रोटी मंगाई 

दे दई दो ताती तो बासी

बुढ़ापे के कोऊ नही आ।


मझली बहु से पानी मंगाया

दे दाओ लोटा खाली

बुढ़ापे के कोऊ नही आ।


सझली बहु से बिछोना मागो

दे दई फटी चदतिया

बुढ़ापे के कोऊ नही आ।


हल्की बहु से पैसा मंगाए

टिकट कटा दो दओ काशी जु को

उ काशी में पंडत रहत है

हो गई उतई की दासी।


कहत कबीर सुनो भई साधु

जेई गक्त सब की होने

बुढ़ापे के कोऊ नही आ।

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Savita vishal patel

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