मम्मी ओ मम्मी सुन री जब हम कालेज में हथे तब बड़े मोसिया को फ़ोन आओ थो के राये थे कि घर मे पूजा है सबइ जनन को आने है उतई खाना है सोनू मम्मी से
बोलट है मोये नही जाने,कये का हो गओ कोउ ने कछु बोल दई क्या??? सोनू बोला।नही जा बात नही आ पर मोये जाने ही नाइ आ मम्मी बोली।चल न अम्मा क्या सोचेंगे वो लोग पिछली बार भी ते न गई हति जब जने हम से पूछे तो का केबी हम???तू समझत कहे नही है रे एक तो मोये आखन से बिलकुल दिखात नही आ और ठीक से सुनात भी नही आ तोये भी परेशानी हुए।मोये कछु न हुज्जे बोल रहा हु न मैं।चल ठीक है चल रही दोनो घर से मोटरसाइकिल से निकल पड़े।तनक दूर जाने पर मम्मा जाते-जाते मार्केट से मोसिया और मौसी के लिए कपड़े लेले।मम्मा ने हओ में जवाब दिया।दोनो कपड़े की दुकान पर रुके और कपड़े लेंन लगे।तभी सोनू का फ़ोन बजो सोनू फ़ोन पर बात करन लगो औऱ बार करत- करत किसी और लुगाई का हाथ पकड़ के चलने लगो।तब उ औरत ने हाथ छुड़वाओ तो सोनू ने देखो की ये तो मेरी मम्मी नही आ तो फिर मेरी मम्मी का गई।सोनू ने पीछे मुड़ के देखा तो लोगन की भीड़ में उसकी अम्मा खो चुकी हति।उसने अपनी मम्मी को बहुत ढूढा।सामने भीड़ लगी थी सोनू ने देखा तो ऊकि माँ बहुत बुरी हालत में मेरी डाली थी एक ट्रक वाले ने ऊकि माँ खा टक्कर मार दई थी।इतने में सोनू की नीद खुल गई।रात के 12 बजे हथे।सोनू भाग गई ऊकि माँ के पास गयो और उनके पाव से लिपट कर रोन लगो।वो पसीना-पसीना हो गओ थो और सोच रो थो की मेरी ही गलती के करण में अपनी माँ को खो देता। अच्छा भाव जो सपना हतो।
सविता कुशवाहा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
मार्मिक कहानी
Thanks ji
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