सलाम शाहिद की विधवा को।

एक सलाम शाहिद की विधवा को।

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Savita vishal patel
Savita vishal patel 30 Jun, 2020 | 1 min read
Poeam Bundelkhandi

तुम से न मिलते तो आछो हतो

कम से कम तुम्हें खोने को डर तो न रातो।


सफर हमाओ अकेलो हतो

 तो पर सच्चो हतो।

 

तुमाए सनग्गे न मुस्कुराते तो आछो हतो

तुम्हरे जाने के बाद रोना तो न पडतो।


सपने पूरे न भये इको कोऊ गम नही आ

सपने देखे ही कये इको गम है।


कये करि हमसे शादी 

कए बनाई हमे अपनी लुगाई।


कये करो उ सात जन्म साथ रहने का वादा

जब 7 दिन भी साथ न चल सकते तुम।


बंद कर दओ है झूठी हँसी मुकुराना

शुरू कर दओ पेट मे पल से नन्ही सी जान के लाने जीना ।

फिर भी गर्व है मोये की 

तुमारी नाम की विधवा हु मैं।


भले ही दूसरन के घर कर बर्तन माजवी

लेकिन हमाई आखिरी इशानी को पुरो ध्यान रखवी।


तुमई निशानी खा भी पढा-लिखा कर फौजी बनाबी

तुमाए ओर हमाये अधूरे सपने गर्व से पूरे करवा वी।


सविता कुशवाहा

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