"बापू मोये बड़ो हो के बाजी राव सिंघम बनने है।"
"अरे मोरे दद्दा पहले बड़ो तो हो जा, बेतिया भर को रख्खो है और इये बाजी राव सिंघम बनने है।" बापू ने झुंझला के कई
उत्तम अबे सिर्फ 5 साल को थो और अबे से उये बाजी राव को भूत सवार हथों जिसे रोज कबहु बाजी राव जैसे कपड़ा तो कबहु ऊके घाई एक्टिंग करत रात तो। ऊके ई आदत से घरवाले भी बहुतई परेशान रात ते।
उत्तम के घाई और भी न जाने कित्ते ऐसे बच्चा है जिने सिनेमा देख देख कर कोनऊ न कोनऊ हीरो के घाई स्टायल या एक्टिंग करबे को भूत सवार होत है। अरे बच्चा ही काय जो सिनेमा जगत की बड़ी हस्तियन घाई बड़े भी बनबो चाहत है न जाने कित्ते लोग इन हस्तियन खा अपनी प्रेणना और आदर्श मानत है।
बेसे तो सिनेमा आज के युग मे मनोरंजन को बहुतई अच्छो साधन है। आज लोगन मे सिनेमा के लाने आकर्षण इत्तो ज्यादा बढ़ गओ है कि अपने पसन्द के हीरो या हीरोइन घाई दिखबे के चक्कर में बे कोनऊ भी हद तक जा सकत है। लोग केबल उनई के जैसो बनबे को सपने देखन लगे है। आजकाल के युवा हर नई फिल्म देखबे की चाहत रखत है और बा फ़िल्म उनके पसन्द के हीरो हीरोइन की हो तो जो पागलपन और बढ़ जात है और ऊके पछारु पागल है कि भले उने देखबे के लाने पैसा उधार काय न लेने होय। आज की पीढ़ी इन हस्तियन खा देखत है और उकी नकल करत है। पेला की फिल्मे समाज, संस्कृति और घर - परिवार पर बनत ती जिये लोग बहुत ही मन से देखे करत ते पर आज के युग की पिच्चरन से आज की युवा पीढ़ी पर बहुतई उल्टो प्रभाव पड़त है। पेला के टेम में बिना आवाज की फिल्में बनो करत ती और श्वेत श्याम कलर की होए करत थी और न ही उमें एकउ गाने होये करत ते। फिर धीरे धीरे रंगीन फ़िल्म बनन लगी और फिल्मन में गाने भी आन लगे। कि बच्चन ,बड़ो, बूढ़ों सबई पे असर कर रइ है। बहुत सी फिल्मे देखबे के बाद कही लोगन प्रोत्साहन होत है तो कही निराशा के भाव जगत है बे अपने खा भी पिच्चर के किरदार से जोड़न लगत है। जो सरासर गलत है हमाई युवा पीढ़ी खा जो समझबो बहुतई जरूर है के फिल्में सिरर्फ और सिरर्फ मनोरंजन के लाने बनत है इसलिए इने केबल मनोरंजन की नजर से ही देखें। और इनमे किरदार निभाबे वाली हस्तियन खा अपनी प्रेणना बनाबे के बजाय कोनऊ महान और सही में प्रेणना बनने वाले व्यक्ति का अपनो आदर्श बनाये।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Very nice 👌👌👌
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