जयंती ताई (मनोज की माँ) आज बहुत खुश थी क्योंकि आज उसके बेटे मनोज की सरकारी जॉब जो लग गई थी आखिर लगती भी क्यों नही मनोज ने दिन-रात सब एक कर रखा था कोई कमी नही छोड़ी मेहनत करने में।जॉब लगने के बाद उनकी आर्थिक हालत में सुधार आने गला।मनोज में एक अपार्टमेंट में एक फ्लैट खरीद लिया औऱ नए और साफ कपड़े पहने लगा लेकिन अपनी ताई के बारे में सोचना उसने जैसे बन्द ही कर दिया था और न ही जरूरत की चीजें देता।जयंती को लगता कि जैसे उसने उसका मनोज को कही खो दिया है पर ताई भी उससे कभी कोई शिकायत नही करती और न ही कुछ बोलती।घर का पूरा काम करती और घर पर ही रहती।उस दिन ताई की तबियत खराब थी और बहुत तेज़ बारिश हो रही थी और मनोज जल्दी-जल्दी में खाने का टिफिन घर ही भूल गया।ताई ने सफाई करते टाइम 12 बजे टेबल पर रखा टिफिन देखा।मनोज को फ़ोन किया तो उसका फ़ोन लगा ही नही।लंच होने में तो अभी 1 घन्टा है मनोज को भुख लगेगी में उसके ऑफिस जा कर उसको टिफ़िन दे आती हूं बिना कुछ सोचे समझे जयंती ताई चल दी बारिश तेज़ होने के कारण कोई बस और ऑटो नही रुक रहे थे बिना समय गवाये जयंती ताई चली जा रही थी मनोज के ऑफिस पहुँचते-पहुँचते जयंती ताई बुखार से तप रही थी और पूरी तरह भीग चुकी थी।जैसे ही वो ऑफिस के अंदर आई सभी उसे देखने लगे वृद्ध महिला,फटी पुरानी सारी,सर पर सफ़ेद बाल,पुरानी घिसी चप्पल।मनोज को देख कर उसने दूर से आवाज लगाई मनोज बेटा.........मनोज ने जैसे ही ताई को देखा दौड कर उसने पास आया और पकड़ कर कोने मे ले गया।तुमसे यहां आने को किसने कहा था आ गई यह मेरी बेज्जती करवाने के लिए।बेटा तू खाने का टिफ़िन घर भूल गया था आज संडे भी था तेरे ऑफिस की कैंटीन भी बंद होगी इसलिए आ गई।ताई तुम ज्यादा होशियार मत बना करो ठीक है चलो जाओ चुप-चाप घर मनोज ने गुस्से से बोला।पर बेटा बाहर बहुत तेज़ बारिश हो रही है थोड़ी देर यही रुक जाउ मेरे कपड़े भी सुख जायेगे जयंती ताई ने प्यार से बोला।नही एक मिनिट भी नही सब लोग देख रहे है जब आई थी तब भी तो बारिश हो रही थी न ? वैसे भी पूरी भीग तो चुकी हो अब सुख कर क्या करोगी।कही भी जाओ पर यहां से चले जाओ मनोज गुस्से से लाल-पीला हो रहा था।बुखार से तपती हुई जंयती फिर एक मिनिट भी नही रुकी और घर की और चल दी।जयंती जाते-जाते सोच रही थी कि मनोज के बाबा बचपन मे भी खत्म हो गए थे तब मनोज बहुत छोटा था।मैने लोगो के झूठे बर्तन माज कर और मजदूरी कर के मनोज का भरण-पोषण किया और मंहगे स्कूल में पढ़या औऱ भी इंजीनियरिंग करवाई इसी दिन के लिए की आज मुझे ये दिन देखना पड़ेगा।तब तक मनोज भी अपने रूम की ओर चल दिया तभी उसने सुना कि उसका दोस्त मदन किसी से फ़ोन पर बात कर रहा है कि सुबह 9 बजे से लागत बारिश हो रही है और बिजली भी गरज रही है घर पर ही रहना और बाहर मत निकलना औऱ मुझे घर आने में भी देर हो जाएगी क्योंकि बस और ऑटो नही मिलेंगे।
इतना सुन कर मनोज के रोंगटे खड़े हो गए उसकी आँखें जैसे अचानक खुली की खुली रह गई हो।मदन फ़ोन पर सब को घर रहने के लिए बोल रहा है और एक भी हूं जो इतनी बारिश में माँ को अकेले घर जाने के लिए छोड़ दिया है वो पूरी भीगी हुई है।मनोज ने टिफ़िन टेबल पर रखा और बिना कुछ सोचे समझे बाहर की तरफ भगा शायद ताई बाहर तक ही पहुँची होगी उसने बाहर जा कर देखा तो बहुत तेज़ बारिश हो रही थी ताई वहां नही थी शायद वो घर के लिए निकल चुकी थी।मनोज ने सोचा गाडी उठा कर ताई को देख आता हूं वो ज्यादा दूर नही पहुँची होगी जैसे ही मनोज पार्किंग से गाड़ी उठाने गया तो उसने देखा कि ताई कंबल ओढ़ के गार्ड की कुर्शी पर बैठी चाय पी रही है और गार्ड वही खड़ा है।उसका रोम-रोम कांप उठा कि एक मामूली से गार्ड को दया आ गई पर मुझे अपनी ताई के ऊपर दया क्यों नही आई।वह दौड़ कर गया और अपनी ताई को गले से लगा लिया वो बुखार से तप रही थी मनोज और जयंती दोनो की आँखों मे आँशु थे जयंती खुश भी थी कि उसे उसका बेटा वापस मिल गया है।
सविता कुशवाहा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
वाह मार्मिक रचना बहुत अच्छी है
Thanks di
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