कॉलेज का पहला दिन था,
मन मे डर और खुशी का मिला-जुला संगम था।
नई तरंगे नई उमंग के साथ समय बिताना था,
साथ ही स्कूल के दोस्तो को भूल नए दोस्त बनाना था।
सबके थे पहले से दोस्त सबका पहले से याराना था,
कोई बात तक नही कर रहा मुझसे न किसी ने पास बिठाया था।
मायूश सा चेहरा ले कर मुझे आखिरी सीट पर बैठना था,
तभी आहट हुई किसी के आने की पूरी क्लास ने उसे न जाना था।
मेरे पास आ कर वो बैठ जाएगी ऐसा मैने न सोचा था,
'मेरी दोस्त बनोगी' कहकर उसने ही हाथ बढ़ाया था।
होने लगे दोस्ती के चर्चे ऐसा हमारा याराना था,
क्लास कभी न टाइम पर जाते रोज बंक पर जाना था।
एक दिन ऐसा भी आया उसे कॉलेज नही आना था,
कैसे भी कर के दिन गुजरा बस उसके घर मुझे जाना था।
जब निकली कॉलेज से तो बैग हल्का पाया था,
हाथ डाल कर देखा तो उसमें पर्स गायब था।
कैसे अब घर जाऊगी बस का न किराया था,
रो-रो कर मैंने अपना बुरा हाल बनाया था।
तभी फ़ोन की घँटी बजी उसी का फ़ोन आया था,
न जाने कैसे पता चला उसको मेरे दिल ने उसे पुकारा था।
एक कोने में बैठी रो रही थी मन भी बड़ा घबराया था,
कुछ ही मिनिट गुजरे होंगे मैने कंधे पर उसका हाथ पाया था।
नए शहर नए कॉलेज में जब कोई न मेरा यार था,
तब जान देती थी वो मुझपर उसी से मेरा नाम था।
आज भी इतने सालों की दोस्ती को दिलों में अपने निभाया है,
माना कि अब पास नही तू पर दोस्ती को हमने आज तक सजाया है।
स्वरचित कविता
सविता कुशवाहा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Wah bahut khub👌👌
Thanks didi
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