काश अगर मैं डॉक्टर होती" तो मैं भी डॉ सुनील अंकल की तरह त्याग और बलिदान करती।डॉ.सुनील अंकल का मेरे जीवन का कितना बड़ा हिस्सा है आज मैं आप सब के सामने अपने जीवन की किताब का एक पन्ना खोलती हूं।बात कुछ उस समय की है जब मैं 10 साल की थी।मेरे पापा-मम्मी दवाईयों के कारखाने में मजदूरी किया करते थे खराब दवाइयों को जलाते समय उसके धुंए से मेरी आँखों की रोशनी चली गई।इसलिए मेरी आँख का ऑपरेश होना था।डॉ.सुनील अंकल को मैं तभी से जानती हूं।डॉ.सुनील अंकल बहुत ही हँसमुख थे छोटे-छोटे बच्चों से उनकी बहुत अच्छी बना करती थी और वो छोटे बच्चों को चाहते भी बहुत थे।डॉ.सुनील अंकल बाहर से सुलझे हुए थे अंदर से उतने ही परेशान रहा करते थे क्योंकि उनकी पत्नी का उनकी बेटी के जन्म के समय ही देहांत हो गया था औऱ उनकी बेटी 10 साल की और वो भी केंसर की आखिरी स्टेज पर मौत से लड़ रही थी फिर भी छोटे - छोटे बच्चों के साथ समय बिता कर और खाश कर मेरे साथ वो बहुत अधिक समय बिताया करते है कई बार मेरे - पापा को मेरी दवाईयो के पैसे दे दिया करते थे।डॉ. सुनील अंकल हमेशा मेरे पापा-मम्मी से कहा करते थे कि अगर आज मेरी बेटी भी ठीक होती तो खुशी की तरह ही हस्ती-खिलखिलाती औऱ मस्ती करती।कितने सालो से मेरी बेटी को मैने हस्ते नही देखा।मेरे साथ समय बिता कर डॉ.सुनील अंकल को ऐसा लगता था कि जैसे वो अपनी बेटी के साथ समय बिता रहे हो।अगले हफ्ते मेरी आँखों का ऑपरेशन होना था लेकिन कोई डोनर नही मिल रहा था जो मुझे आँखे दान करे और न ही मेरे पापा-मम्मी के पास इतने पैसे थे की वो खरीद सके।डॉ.सुनील अंकल की बेटी को भी सिर्फ आखिरी 7 दिन का समय दिया गया(वो सिर्फ 7 दिन ही जिंदा रह सकती है)।डॉ.सुनील अंकल पूरी तरह हार चुके थे उन्हें जिस बात का डर था वही होने जा रहा था उनकी दोनो बेटियों को वो खोने वाले थे।खुशी का आँखो का ऑपरेशन है पता नही कोई डोनर मिलेगा या नही और मेरी बेटी के पास तो अब वक्त ही नही है।काश मैं किसी एक को तो बचा पता।डॉक्टर होने के बाद भी मैं कुछ नही कर पा रहा हूं।डॉ.सुनील अंकल खुद को ही कोशने लगे पर कहते है ना भगवान एक दरवाजा बंद करता है तो बहुत सारे दरवाने खोल देता है।डॉ.सुनील ने सोचा कि मेरी बेटी को तो कैंसर है उसे मैं बचा नही सकता तो मैं उसकी की आँखों को खुशी के ऑपरेशन में डोनेट कर देता हूं।कम से कम एक बेटी को तो बचा पहुँगा।मेरी बेटी की आँखों से खुशी पूरा संसार देखेगी।उनके इतने बड़े परोपकार के कारण ही आज मैं देख पा रही।आज मैं 22 साल की हूं ऑपरेशन के 2 साल बाद मेरे पापा-मम्मी का रोड़ एक्सीडेन्ट में देहांत हो गया था तभी से मैं डॉ.सुनील अंकल के साथ उन्ही के घर मे रहती हूं उनकी बेटी बन कर और वो मेरे पापा बन कर मेरी सारी ख्याहिऐ पूरी करते है।मैं उन्ही की तरह डॉक्टर बनना चाहती हूं।ताकि मैं भी अपना स्वार्थ न देख कर अपना पूरा जीवन परोपकार में बिताऊ।
सविता कुशवाहा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बहुत अच्छा
Thanks
Very touching
Thanks ji
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