कोरोना की वजह से मजदूर किस तरह परेशान हो रहे है उसकी एक झलक कविता के माध्यम दे बताना चाहती हु।
निकली जब मैं लंबे सफर को
तो ये मैने क्या देख लिया,
बड़े बड़े ट्रको मैं सामान की
जगह लोगो को खड़ा देख लिया।
निकली जब मैं लंबे सफर में
तो ये मैने क्या देख लिया,
कड़ी धूप में एक माँ को अपने आँचल से
छोटे से बच्चे को बचाते देख लिया।
निकली जब मैं लंबे सफर में
तो ये मैने क्या देख लिया,
सर पर 25 किलो के आटे की बोरी और
दो बच्चे साथ मे लिए अपने घर की ओर पैदल जाते देख लिया।
निकली जब मैं लंबे सफर में
तो ये मैने क्या देख लिया,
दो रोटी के लिए चार-चार घण्टे
लम्बी लाइन में हजारो लोगो को खड़ा देख लिया,
निकली जब मैं लंबे सफर में
तो ये मैने क्या देख लिया।
घर कब पहुँचेगे इस आश में
उसकी आँखों को नम देख लिया,
निकली जब मैं लंबे सफर में
तो ये मैने क्या देख लिया।
सविता कुशवाहा
निकली जब मैं लम्बे सफर को।
Poem
Originally published in hi
Savita vishal patel
18 May, 2020 | 1 min read
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