पतिदेव ने हलवा बनाया

हास्य लिखने का एक और प्रयास। आपको कैसा लगा बताए ज़रूर।

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Charu Chauhan
Charu Chauhan 10 Jul, 2021 | 0 mins read
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सुनो आज हलवा है खाना,

तुम बना दोगी क्या जानांँ,


ये बेवक्त की फरमाइशें और उमस गर्मी की,

पत्नी की साँसे बरसा रहीं थीं गर्मी शोले की,


लेकिन चाशनी में डूबी जब फर्माइश आयी,

पत्नी ने भी शांत बन, दिमाग की बत्ती जलायी,


मुस्करा कर कही उसने एक बात पुरानी,

जब पति ने कहा था मैं सीख रहा हूँ तुम्हारे संग हलवा बनाना रानी,


दोगुनी चाशनी लगा जब बात, पत्नी ने परोसी,

पति ने भी तैश मे आकर, सोफ़े से तसरीफ हटाई,


राजा बन सीधे की रसोई पर उन्होंने चढ़ाई,

खिलाऊंगा हलवा आज तुम्हें भी, कह ली एक अंगड़ाई,


पत्नी भी इंतजार में तसल्ली से बैठ गयी,

तभी सूजी कहाँ रखी है कि कूक आ गयी,


आँखे घुमा बोली बाएं से सेकंड रैक के दाएं रखी है,

सुनो ध्यान से देखना ऊपर कच्ची नीचे के डिब्बे मे भुनी रखी है,


चीनी भी मिल जाएगी वहीं पास में,

घी और ड्राई फ्रूट्स मिलेंगे दाएं रैक के बायें भाग में,


दस मिनट का इंतजार बर्दाश्त से बाहर हुआ,

रसोई में जब ना कोई खड़का हुआ,


शांत वातावरण देख श्रीमती ने रसोई में धावा बोला,

घुसते ही सर चकराया, मुँह रह गया खुला का खुला,


बंद चूल्हे पर कढ़ाई थी चढ़ी और उसमे करछु थी सजी,

सूजी, चीनी और घी भी थे ज्यों का त्यों डिब्बों में ही बंद,


पतिदेव जो कोने में बादाम काजू खाने में थे मगन,

हलवा बना नहीं अभी तक, सुनकर हो गए सन्न,


कहा... हलवा आज ख़्यालों का है काफ़ी,

सूजी का खिलाऊंगा अब किसी और दिन रानी,


छोड़ो इन बेकार की बातों में क्या रखा है,

हलवा तो ग़ज़ब तुम्हारे हाथों का ही लगता है,


कढ़ाई वापिस स्टेंड पर जा पहुंची बाकी समान को भी उनकी जगह दी,

आज ख़ुद हलवा बनाने की क्रिया ने पति जी की बुद्धि सही कर दी।


स्वरचित व अप्रकाशित

© चारु चौहान

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