पौष मास की ठंडक
और अलग अलग रंगों में रंगे त्योहार...
किसी के लिए लोहड़ी की अग्नि
किसी के लिए संक्राति की खिचड़ी।
बिहू मना रहा है कोई...
कोई कहता इसे थियान,
तो कहीं दो दिन पोंगल का त्योहार।
प्रारम्भ होता लोहड़ी से, जो आती संक्राति की पूर्व संध्या को
अग्नि जला बीचो बीच....
मूँगफली, तिल, गजक और मक्का के संग सब परिक्रमा करते।
ढोल नगाड़े बजते हैं, तब डीजे फीके लगते हैं,
दूसरे दिन मकर संक्रांति का दिन,
सूर्य उत्तरायण जो कहलाए।
सुबह जल्दी स्नान कर
लगता खिचड़ी और तिल का भोग,
दान पुण्य का कर्म कर,
करते शुभ कार्यक्रम का पुनः आरम्भ।
पतंगे ढकती पूरे आसमान को,
लड्डू की सोंधी महक जंचती सबको,
किसानी के हैं ये पर्व सारे...
बिहू और पोंगल का भी है यही आशय।
फसल कटाई की खुशी के ये त्योहार
ले आते हैं खुशियां हजार।।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Nice
thnx
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