सुनो बाबा,
अभी हूँ मैं छोटी तुम ही तो कहते हो ना,
दुनियादारी की नहीं मुझे समझ...
तुम्हीं बार बार दोहराते हो ना,
सुनो माँ,
अभी हूँ मैं अक्ल से कच्ची, तुम ही पड़ोस वाली चाची से कहती हो ना,
सब्जी में नमक की भी नहीं मुझे अंदाज...
तुम्हीं रोज-रोज फटकारती हो ना,
सुनो बड़े भैया,
अभी हूँ मैं छोटी बच्ची, तुम ऐसे कह कर ही दादी की डांट से बचाते हो ना,
बड़ों के सामने बोलने की नहीं मुझे समझ,
तुम्हीं धीरे धीरे बड़बड़ाते हो ना,
फिर क्यूँ मुझे अभी इस बंधन में बाँध रहे हो?
क्यों... मन के कोंपल से निकलते मेरे सपनों को,
आधे रास्ते में ही कुचल रहे हो??
फ़ूलों सी काया को...
ऐसे मसलने के लिए क्यूँ तैयार कर रहे हो???
सुनो बाबा, माँ और बड़े भैया...
अभी जीने है मुझे अपने सपने,
मेरे बचपन को यूँ ना कुंभलाने दो।
अभी तन मन से भी करना है खुद को तैयार,
तब तलक ज़रा तुम रुको...
हमेशा झुकती आयी हूँ मैं, लेकिन इस दफा ज़रा तुम झुको ।।
स्वरचित व मौलिक
© चारु चौहान
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
👌👌👌👌👌👌
Waahhh!!! Kya baat!!! ❤️❤️
Thank you guys
Please Login or Create a free account to comment.