क्या है साहित्य?
जिसने जैसा गढ़ा, उसका वैसा साहित्य।
किसी ने प्रेयसी की सुन्दरता पर महाकाव्य लिखा,
तो किसी ने प्रेमी-विरह में गीतों को रचा।
कहीं लिखे गयें भक्ति में लीन पद और राग,
कहीं खूबसूरत दोहों के संग्रह ने मन को हरा।
फ़िर आता है मेरे जैसे अनाड़ी का साहित्य....
कभी विधाओं में भटकी,
तो कभी रागों के झोल-माल से लड़कर चंद पंक्तियाँ लिखी ,
लेकिन निरंतर सुधार करते हुए अनुभवियों के सानिध्य में,
कुछ अपना साहित्य मैंने भी गढ़ा।
साधारण शब्दों के मोती पिरोकर मैंने भी बनायी अपनी एक माला।
जिसमें रुदन है, जिज्ञासा, निडरता और राग प्रेम का भी है,
है समाज का आईना और कहीं है गिरेबान में झाँकती चिलमन के पीछे की आँखें।
शब्दों की प्यास को तृप्त करते हुए लिखा है मैंने भी कई दफा अपना साहित्य।
साहित्यरत्नों को पढ़ते, समझते हुए हाँ... लिखा मैंने भी अपना एक गौण साहित्य।।
© चारु चौहान
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
अनमोल रचना
आभार 🙏
👍👍👍👍🤙
Nice
Thank you guys
Very impressive
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