सोच रही थी नयी साड़ी पहन इतराऊंगी मैं,
लेकिन मैं ठहरी छोटी बहू...
भला कैसे सबकी नजरों में चढ़ पाऊँगी मैं?
सास कहती अरे सुन , मेरे पैर दबा दे....
बड़ी भाभी कहती छोटी ज़रा चाय तो चढ़ा दे,
अब ननद रानी भला कैसे पीछे रहती...
बोली, मेरी प्यारी सहेली जैसी भाभी मेरे लिए जूस बना दे।
लेकिन मैं ठहरी चपल चतुर... ऐसे कैसे सबके झांसे में आऊंगी मैं.
लड्डू पेड़ा, रस मलाई, बर्फी अपने हिस्से की भर भर कर खाऊँगी मैं।
तभी खुराफाती दिमाग में एक योजना आयी।
जूड़ा खोल कर बालों को जोर जोर से हिलायी,
आंखों को थोड़ा बड़ा किया,
झूठा ग़ुस्सा चेहरे पर गड़ा,
पड़ोस की एक अम्मा बोली अरे, कमला तेरी बहू को देख तो माता आयी।
सफल होती योजना देख मेरी तो बांछें खिली....
अब ना कोई काम बता रहा है और ना ही डांट सुना रहा है,
तरस रहीं थीं जो पकवान खाने को....
धीरे-धीरे सब भोग के रूप में चरणों में आ रहा है,
और यह सब देखकर मेरा मस्त मोला पेट गुदगुदी मचा रहा है।।
विधा - हास्य
स्वरचित व मौलिक
©चारु चौहान
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Hehehehehe.....
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