बहुत कुछ सिखा गया यह "दो हजार बीस" कोरोना वाला साल,
थोड़े में बसर करना, उस थोड़े में से भी थोड़े को बचा लेना,
हाँ...बहुत कुछ सिखा गया यह कोरोना वाला साल...
अपनों का असल चेहरा, और अनजानों में कुछ अपनों सा बसेरा,
बहुत कुछ जोड़ गया यह साल "दो हजार बीस" कोरोना वाला,
टूटे छूटे रिश्तों को, वीडियों कॉल की ओर मोड़ गया,
घर में रह कर भी जो थे दूर, उनसे भी अपना दुखड़ा बोल दिया,
दो मिनट वाली कॉल को देखो घंटों में तब्दील कर दिया,
मशीनों की तरह चलने वाले हाथों को पुरानी एल्बम फिर से पकड़ा गया,
बासी पड़ चुके रिश्तों को भी समय का अमृत दे गया,
बचपन की खट्टी-मीठी यादों पर से धूल की परते हटा गया,
क्या क्या शरारत की थी बचपन में बच्चों से भी कह दिया,
ताश की गड्डी लेकर फिर एक बार चौकड़ी बैठी थी,
दुग्गी, तीग्गी एक दफा फिर एक दूसरे से टकराई थी,
और गुलाम की भी अक्ल रानी ने बखूबी ठिकाने लगायी थी,
छूट गई थी जो लूडो-कैरम की गोटियाँ स्कूल के बाद,
उनसे भी तो मुखातिब करा गया।
अंत में कुछ तोड़ भी गया यह साल....
झूठे शुभचिंतकों की आस,
और बहुत कुछ चाहिए होता है जीने के लिए इस बात का भ्रम।।
विदाई की नमस्ते "साल २०२०"
© चारु
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
👌👌
thank you @Sandeep
2020, करोना वाला साल, बहुत से दर्द दे गया, बहुत से अपने बिछड़ गये. कुछ पुराने समय में भी ले गया. हर समय चलने वाली रेलगाड़ियां बन्द हो गयीं. स्टेशन शान्त हो गये.
True
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