पथरा गई अब आँखें, टूट रही अश्रु धार है, यादें धूमिल हो रही, बेबाक अब हर बात है, सीख रही मौन रह, तसल्ली का दुःसाध्य पाठ, खौफ को खौफ का सामना कराने की फ़िराक़ में हूँ, चट्टानों सी मैं खड़ी फेंक दिया दुःख दर्द दूर, तौल कर तराजू में, लौट आयी हूँ मैं सैलाब से, खुद को संभाले.... फिर भी एक कमी सीने में रही है, चित्कार एक मेरे दिल की गहराई में दबी है, जुबान कहते हुए खारिज हुई है, मेरे अन्दर, दर्द की एक नदी थमी है।।
स्वरचित © चारु चौहान
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Very Nice
thank you
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