वसीयत

पिता द्वारा वसीयत के बँटवारे पर आधारित एक कहानी।

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Charu Chauhan
Charu Chauhan 21 Mar, 2021 | 1 min read
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आज उस 100 गज के दोमंजिला मकान में कुछ ज्यादा ही चहल पहल हो रही थी। घर के सामने गाड़ियां और दुपहिया खड़ी करने के लिए जगह कम पड़ रही थी। हो भी क्यों नहीं ससुराल पक्ष और अपने घर के सबसे बड़े हो ठहरे मोहनलाल कोठी वाले। कोठी को खैर उनके 30 वर्ष तक आते-आते पिता के कर्जो के कारण बिक गयी थी। साथ ही बिक गया था जमा जमाया पुश्तैनी व्यापार भी। लेकिन नाम के आगे हमेशा ही इसका ताव रहा। 30 की उम्र में प्राइवेट क्लर्क की नौकरी पकड़ी और अपनी मेहनत और पत्नी सुशीला की समझदारी से फर्श से खुशियों के अर्श तक का सफ़र तय किया था मोहन लाल ने।

आज अंतिम समय में पूरे जीवन की प्रस्तावली घड़ी की सुइयों की भाँति उनकी आँखों के सामने घूम रही थी। अपने अच्छे और बुरे कर्मों का एक लेखा जोखा वह चित्रगुप्त से पहले खुद बना चुके थे। बेटा-बहू, दोनों पोतियां और सभी सगे-संबधी उनके पलंग के इर्द-गिर्द ही घूम रहे थें। वकील साहब फाइल में पेपरों को करीने से लगा रहे थे। किसी को विशेष निमंत्रण देकर बुलाया नहीं गया था। बस जिस रिश्तेदार को भी पता चला कि आज मोहन लाल जी अपनी वसीयत को लेकर खुलासा करने वाले हैं उन्होंने कूच कर दी उनके घर। सभी रिश्तेदार पसरी खामोशी से ऊब से गए थे। तभी आखिरी गाड़ी घर के सामने आकर रुकी। सबकी आँखों में चमक दौड़ गई। हाँ, इस गाड़ी से मोहन लाल की लाडली बेटी अनुपमा उतरी थी। इसी का तो इंतजार था सुबह से सभी को। आते ही वह पिता के गले लिपट गयी। क्या करें... पिता पुत्री का प्रेम ही ऐसा होता है। दामाद सुबोध ने भी पैर छू कर ससुर जी का आशीर्वाद लिया। 

वकील साहब ने अपना मोर्चा संभाला चारों तरफ उमड़ी भीड़ को नजरें घुमा कर देखा। सबकी आँखें उन्हें ही घूर रहीं थीं। खैर उन्होंने वसीयत को पढ़ना शुरू किया। मैं 'मोहनलाल सिंह' छोटी सी संपति का मालिक। अपनी चल संपति का तीन चौथाई हिस्सा अपने बेटे-बहू के नाम कर रहा हूँ और अचल संपति जिसमें मेरा यह घर और एक खाली प्लॉट आता है। अपनी दोनों पोतियों के नाम बराबर बराबर कर रहा हूँ। साथ ही चल सम्पत्ति का एक चौथाई हिस्सा बेटी अनुपमा को देता हूँ। सब अचम्भे से खड़े थे किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि मोहनलाल जैसे आधुनिक विचारों वाले और अपनी बिटिया से बेटे से अधिक प्रेम करने वाले व्यक्ति अपनी बेटी को इस तरह नजर अंदाज कर सकते हैं।

अनुपमा ने पापा को लिपट कर रोना धोना शुरू कर दिया। पापा आप ऐसे कैसे कर सकते हैं। इस नलायक बेटे को आपने सब कुछ दे दिया और मैं...?? मैं पढ़ लिखकर वकील बनी आपका सिर ऊँचा किया और आपने मुझे ही उपेक्षित रखा। पापा आप कानून भी भूल गए क्या??? जो बेटा बेटी को माता पिता की संपति में समान अधिकार देता है।

मोहन लाल मंद मुस्करा दिए। अब अपना अंतिम समय उन्हें बेहद निकट लग रहा था। अपनी भर्रायी सी आवाज में बोले - अनु, तू बेशक आज भी मेरे दिल के बेहद करीब है। आज भी तू मुझे तेरे भाई से ज्यादा प्यारी है। लेकिन बेटा सम्पति पर तेरा हक नहीं। तू वकील बनी क्योंकि तू बनना चाहती थी। और मैंने उसमें सदा तेरा साथ दिया। बाप की हर जिम्मेदारी मैंने बख़ूबी निभायी यह मैं जानता हूँ। सुबोध तेरी पसंद था उसे भी दिल से अपनाया लेकिन इन 15 सालों में यह कितनी बार ससुराल की दहलीज पर आया तू भी जानती है। 

अनु, रही बात कानून की तो मैं तेरा जैसा वकील तो नहीं लेकिन इतना तो जानता हूँ कि वह अधिकार चार पीढ़ियों से चलती आ रही पुश्तैनी संपति पर होता है पिता की पर नहीं। और पुश्तैनी सम्पत्ति का क्या हुआ था तू जानती है। अब मेरी जो सम्पत्ति थी उसे बांटने का हक़ सिर्फ मेरा है। यह संपति मैंने बहू बेटे को इसलिए दी क्योंकि वर्षों से यही तो लगे थे तेरी माँ और बाप की सेवा में।ये छोटी छोटी बच्चियां ही घूमती रहती है मेरे चारों ओर बाबा कुछ चाहिए करती-करती। तेरी माँ दो साल बिस्तर पर रही। उसकी मल- मूत्र तक की सफाई तेरी इस भाभी ने ही की। चाहती तो यह दूसरे शहर जा सकती थी कि मेरे मरने के बाद सम्पति तो मिल ही जायेगी। तेरी माँ तुझे याद करती रही और तू आकर उसकी सेवा तो क्या करती मिलने भी दो बार 1-1 घण्टे के लिए आई। बाप भी तुझे आज याद आया। अनु, याद रखना वसीयत बराबर रखने के लिए उत्तरदायित्व और फर्ज भी बराबर रखने पड़ते हैं। मैं यह नहीं कहता है तू ससुराल छोड़कर यहां आकर हमारी सेवा करती। लेकिन कई ऐसे मौके आए जहां हमें तेरी जरूरत थी। तेरी भाभी अकेली पड़ जाती थी और तू बुलाने से भी नहीं आयी। तू सदा खुश और संपन्न रहे यही तेरे बाप का आशीर्वाद है। बेटी के सर पर हाथ रखते रखते ही वो परलोक सिधार गए।

सबकी आँखें नम हो गई। जाते-जाते भी मोहन लाल कोठी वाले लोगों के लिए चर्चा का विषय बन गए। कुछ लोगों की नजर में वह सही थे तो किसी की नजर में कठोर बाप। 


स्वरचित

©चारु चौहान

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Charu Chauhan

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Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    बेहतरीन

  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    समाज में नित नयी बहस छिडी रहती है, इस मसले पर लेकिन काम कोई करना नहीं चाहता, ना ही जिम्मेदारी निभाना, ये तो ससुराल गयी बेटी की बात है, दो भाईयों में से एक ही करता रहता है, मां बाप का, और दूसरा केवल हिस्सा कैसे बंटे, उसे क्या क्या मिलना चाहिए इस बात पर नज़र रखता है,

  • Charu Chauhan · 3 years ago last edited 3 years ago

    जी... प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए धन्यवाद 🙏

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