जिंदगी की डोर,
इधर एक छोर उधर एक छोर,
पतंग सी है जिंदगी
उड़ती रहती है इधर-उधर,
ऊँचाइयाँ छूती जिंदगी,
किसी की कट कर वापिस ज़मीं की ओर।
रंग बिरंगे कागज़ों जैसे रिश्तों से बनी,
कोई छोटी, कोई बड़ी,
पतंग सी है जिंदगी
उड़ती रहती है इधर-उधर,
कहीं सौ बरसों की जिंदगी,
किसी की आधे रास्ते में ही डोर टूटी।
पतंग के मांझों सी समीकरण जीवन की,
कोई सूती, कोई रेशमी,
पतंग सी है ज़िंदगी
उड़ती रहती है इधर-उधर,
किसी की सपाट सुलझी मांझें की चकरी,
कहीं उलझनों में उलझी टूटी फूटी मांझें की गुल्ली ।
स्वरचित व मौलिक
©चारु चौहान
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ है
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