शालू तेरा इस बार पहला मतदान है। किसे देगी??? मैं सोच रही थी वो जो घर-घर साड़ी बाँट रहे हैं वही सही हैं। क्या बढ़िया साड़ी लाए है सूरत से स्पेशल। शालू जो अखबार में आँखें गड़ाए बैठी थी माँ की आवाज से बाहर निकली। कुछ बोलती उससे पहले ही दादी बोली - साड़ी का क्या है बहुत पड़ीं हैं घर में यू ही पहले से ।अरे, बिटिया वोट तो उन्हें ही देना जो कल आए थे। बड़े भले मानस थे। देखा नहीं तूने कैसे मुझ बेचारी वृद्धा को कंबल दे गए। मैं तो देख उन्हीं को दूँगी और तू भी उन्हें ही देना। क्योंकि वो लड़कियों के लिए भी कुछ पैसे वैसे का कह कर गए हैं। अच्छे लोग थे।
सुनकर शालू मुँह सिकोड़ने लगी। तभी पीछे से पापा की आवाज कानों में पड़ी। अरे छोड़ो तुम दोनों। क्या उसे अपने साथ बहका रहे हो। शालू अब समझदार हो गयी है। आज की पीढ़ी है, सब राजनीतिक दलों का परीक्षण करके मतदान करना जानती है।
लेकिन पापा आप को भी तो कल कुछ लोग पार्टी करने के लिए ले गए थे, "शालू अचरच से बोली।" हाँ... गया था। क्योंकि समाज है और कई बार ना चाहते हुए भी जाना पड़ता है। लेकिन वह एक शराब की बोतल और पार्टी मेरा मत नहीं खरीद सकती और मैं तुमसे भी यही उम्मीद रखता हूँ।
शालू बस इतना याद रखना कि इस प्रकिया का नाम जरूर मतदान है लेकिन सिर्फ अपने 'मत' का 'दान' मत करना बल्कि बेहतर ढंग से उपयोग करना क्योंकि आगे आने वाले सालों के लिए हमारा समाज कैसा होगा हमारा यह 'मत' ही फैसला करता है। हमारा 'मत' ही फैसला करता है कि हमारे समाज का विकास होगा या सिर्फ नेताओं की जेब भरेंगी। और बच्चा, विकास होगा तो हम खुद साड़ी, कंबल खरीद सकते हैं ना।
अब मैं समझता हूँ कि तुम इतनी समझदार हो चुकी हो कि अपने मत के लिए माँ, दादी या किसी और के 'मत' की तुम्हें आवश्यकता नहीं होगी।
शालू - लेकिन पापा मुझे तो नहीं लगता आज के समय में कोई भी नेता या राजनीतिक पार्टी है जो सिर्फ देश और समाज के लिए सोचे। सब जगह लालच ही नजर आता है। तब ऐसे में हम क्या कर सकते हैं मैं यह नहीं समझ पा रही।
पापा - फिर देखो तुम्हारी नजर में कौन कम लालची है। कौन थोड़ा भी हमारे बारे में सोचता है।
शालू ने सर में सर हिलाया और डट गयी सब पार्टियों को एनालिस करने।
दोस्तों, हम इलेक्शन कमीशन और राजनीतिक पार्टियों को हमेशा दोष देते हैं। लेकिन हमारा भी फर्ज बनता है कि अपने 'मत' का सही उपयोग करें। चुनाव आते ही पार्टी लग जाती हैं मतदाताओं को लुभाने में। हम भी देखते हैं कि कैसे पाँच सौ रुपये और एक बोतल शराब में वोट बिक जाते हैं। तरह तरह के प्रलोभन दिए जाते हैं और जनता भी उस बहकावे में आसानी से आ जाती है। अपना वोट आसानी से किसी को भी बेच देती है।
एक जिम्मेदार मतदाता के रूप में हमे भी अपना किरदार निभाना चाहिए। इस तरह के लालच को छोड़ भविष्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। अपने 'मत' का सिर्फ दान या सौदा ना करें बल्कि उसका उपयोग एक विकसित समाज बनाने के लिए करें।।
धन्यवाद !
चारु चौहान
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बहुत अच्छे से समझाया आपने धन्यवाद
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