"बोले हुए शब्द वापस नहीं होते '' (कहानी अस्तित्व की)

रिया में इतनी हिम्मत देख सुमित थोड़ा सपकापाया फिर हमेशा की तरह घड़ियाल के आँसू दिखा कर रिया को मनाने की कोशिश करने लगा.

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Charu Chauhan
Charu Chauhan 28 Jul, 2020 | 1 min read
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रिया निशब्द सोफे पर बैठी सिर्फ सुनती जा रही थी और सुमित लगातार चीखे जा रहा था। रिया बीते हुए 2 सालों में पहुंच चुकी थी, ऐसा नहीं है कि सुमित पहले ऐसा नही था, लेकिन बीतते दिनों से उसका व्यवहार और बुरे से बुरा होता जा रहा था. बात-बात पर चीखना चिल्लाना. मजाक पर भी एक दम से गुस्सा हो जाना। परेशानी पूछी जाएं तो बात और बढ़ जाती है. तभी सुमित ने रिया कोई जोर से हिलाया और बोला- तुम सुन रही हो मैं कह क्या रहा हूँ??? रिया ने हाँ में सिर हिलाया और वो और जोर से चिल्लाया... तो फिर जवाब दो मुझे. रिया जवाब तो दे सकती है सुमित की हर बात का बहुत ही अच्छी ढंग से लेकिन वो हर बार रुक जाती थी सिर्फ उस रिश्ते के लिए जिसे वो जाने कितने टाईम से अकेले ही निभा रही थी.

        रिया और सुमित ही कॉलेज में पढ़ते थे लेकिन रिया एक साल सुमित से जूनियर थी। आजाद ख्यालों वाली हँसती मुस्कुराती रिया को जब सुमित ने देखा था तब ही उसे पसंद आया गयी थी उसने जब धीरे-धीरे रिया को ये बात बतायी उसे भी सुमित में कोई बुराई नहीं लगी थी और बात आगे बढ़ गयी थी। कॉलेज टाईम में भी अगर रिया अपने क्लासमेट लड़के से भी बात करती तो भी सुमित भड़क जाया करता था तब रिया सोचती थी कि शायद नया-नया रिश्ता है और ये सब उसका प्यार है, तो वो हमेशा इग्नोर कर देती थी।


       कभी-कभी, उसे अजीब लगता था उसका व्यवहार. लेकिन कहते हैं ना, प्यार में ज्यादातर गलतियाँ हम यूँ हीं माफ भी कर देते हैं।  इसी तरह 5 साल निकले और उनकी शादी हो गयी। शादी के दूसरे दिन ही जब सब साथ बैठे थे तो हसीं मजाक में सुमित के दूर के एक छोटे भाई ने रिया की खूबसूरती की तारीफ कर दी जिस पर रिया ने मुस्कुराकर थैंक यू बोल दिया था फिर उसके बाद सुमित ने रिया को कमरे में बुला कर उसके मुस्कुराने के लिए बहुत डांटा था रिया उसे तब देखते रह गयी थी। 1 महीने बाद छुट्टी खत्म होने के बाद दोनों घर से दूसरे शहर आ गए। जॉब करने के लिए रिया को साफ मना कर दिया गया जबकि वह करना चाहती थी.

धीरे धीरे रिया को पता चला जिसे वह प्यार समझती थी वह सिर्फ सुमित की सनक थी. पूरे समय उसके साथ रहने पर वह समझ चुकी थी कि सुमित बहुत शक्की इंसान है। धीरे-धीरे उसने रिया को घर में कैद सा कर दिया था। रिया पर अधिकार सा कर बैठा था सुमित।  ना वो बाहर जा सकती थी ना कोई उसकी अनुपस्थिति में घर आ सकता है। यहां तक इन 2 सालों में अपने पड़ोसियों तक वो ठीक से नहीं जान पायी है। जब शुरु-शुरु में किसी से भी बात होती थी और सुमित को पता लगती तो झगड़े क अलावा और कुछ ना होता था। फिर रिया ने सुमित को खुश रखने के लिए खुद ही किसी से बात करना छोड़ दिया.


हंसती मुस्कुराती लड़की एक रोबोट सी हो गयी. जैसा सुमित चाहता वैसा ही वो करती। सोने के पिंजरे में कैद होकर रह गयी थी रिया.

         आज भी कोई बड़ी बात नहीं थी, बात सिर्फ इतनी थी जब सुमित शाम को घर वापिस आया रिया उसे गेट पर ही मिली उसका ये देखना था कि उसका गुस्सा आसमान चढ़ गया कि, तुम क्यों गेट पर खड़ी थी??  किसी का इंतज़ार था या अभी-अभी कोई यहां से गया है ??बाहर किसे देख रही थी ? जब हज़ार बार कहा है घर के अंदर रहा करो,जो चाहिए मैं घर में ही लाकर देता हूँ तो क्या जरूरत है यहां वहां झांकने की?? इन्हीं बातों का जवाब वो रिया से बार बार माँग रहा था उसकी बातें नश्तर की तरह रिया को चुभ रही थी लेकिन हमेशा की तरह निःशब्द सुनती भी जा रही थी।

उसे लगता था कि अभी सुमित गुस्से में है थोड़ी देर बाद जब गुस्सा उतर जाएगा तो चुप हो जाएगा....वही हुआ भी।

कुछ देर बाद जब वह शांत हुआ रिया उसके पास आई और बोली की उनके घर नयी खुशियां आने वाली हैं और इसी की खुशी में मैं तुम्हारा इंतज़ार करती हुई गेट पर पहुंच गयी थी। सुमित ये सुन कर खुशी से उछल पड़ा लेकिन अचानक ही उसके हाव भाव बदल गए और रिया से बोला- तुम पक्का श्योर हो ना इसके लिए? ये मेरा ही है ना? रिया एकटक उसे देखती रह गयी क्युकी कुछ भी था उनके बीच परन्तु उसने इस सवाल की उम्मीद कभी सुमित से नहीं की थी लेकिन सुमित के सवाल जारी थे.... बताओ रिया.. मुझे इसकी ज़िम्मेदारी तुम दोगी तो मुझे ये पता होना चाहिए।


रिया बिन जवाब दिए ही कमरे में चली गई क्योंकि वो जान चुकी थी कि जवाब देकर भी कोई फायदा नहीं है और ना ही सुमित के शक़ का अब कोई इलाज़ है रात भर सोचने के बाद उसने सुमित से अलग होने का फ़ैसला आज आख़िर ले ही लिया। उसने साफ तौर पर सुमित को बोल दिया कि अब वो बार बार अपने चरित्र पर उठती तुम्हारी उँगली बर्दाश्त नहीं करेगी.

रिया में इतनी हिम्मत देख सुमित थोड़ा सपकापाया फिर हमेशा की तरह घड़ियाल के आँसू दिखा कर रिया को मनाने की कोशिश करने लगा. बात बनती हुई नहीं दिखी तो समाज का डर उसे दिखाने लगा.इस पर सिर्फ रिया, यही सुमित से कह पायी कि  "कहे हुए शब्द वापिस नहीं होते,,,,,"  सुमित मैंने बहुत बर्दाश्त किया लेकिन बस अब और नहीं. घर के बड़़े भी एक एक करके समझाने लगे... लेकिन रिया को आज ना सुमित का डर था ना ही उन घर के बड़े उन सगे संबंधियों की जिन्होने बीते सालों में तो कभी उसकी सुध नहीं ली। 

 सालों से उसके अधिकारों का हनन सुमित करता गया और वह सहती गयी सिर्फ रिश्ते को बचाने के लिए, उसे मौकों पर मौके देती गयी।  परंतु आज सवाल था उसके अस्तित्व का...उसके स्वाभिमान का। क्योंकि आज अगर कुछ नहीं कर पायी तो आगे आने वाली संतान में अपना स्वाभिमान खोकर उसे कैसे वह स्वाभिमानी बना पाएगी ?? अपना आत्मविश्वास हारकर बच्चे में आत्मविश्वास कैसे जगायेगी....? और उसकी संतान  अगर बेटी हुई तो अपने अधिकारों का मर्दन करा कैसे उसे अधिकारों के लिए लड़ना सिखाएगी...??? पल पल मरने से, उसने एक बार ही पीड़ा सहना स्वीकार किया...।


© चारु

धन्यवाद......!


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Charu Chauhan

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Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Mayur Chauhan · 4 years ago last edited 4 years ago

    सराहनीय....

  • Jyoti · 4 years ago last edited 4 years ago

    Beautifully written 👍

  • Yogesh Kumar · 4 years ago last edited 4 years ago

    Nice

  • Charu Chauhan · 4 years ago last edited 4 years ago

    Thank you guys

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