"फिर दबे पांव सर्दी आयी"

कुछ मानसिक विकृत लोगों के लिए लिखी गई मेरी यह कविता। जो खुद को समाज का ठेकेदार बताते हैं लेकिन खुद अपनी सीमा नहीं जानते।

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Charu Chauhan
Charu Chauhan 01 Jan, 2021 | 1 min read
Society gossip

फिर दबे पांव सर्दी आयी,

राजनीति की लौ अपने आप फड़फड़ाई,

बरसों से यही तो होता आया है

यही मात्र अड्डा है होता सर्दियों में, 

राजनीतिज्ञ विशेषज्ञों और झूठे सामाज सुधारकों का। 

कुछ पत्ती-पुराली, लकड़ी एकत्र कर

बनता है एक अलाव,

और गांवों में जो कहलाता है तप्पड़भोज....

खैर यहाँ बातें होती हैं अमेरिका से जापान की, 

सड़कों से लेकर आकाश में उड़ते विमान की, 

कभी किसी की अमीरी से किसी की लाचारी की, 

चर्चा यहाँ आम होती है.... 

दूसरे की बेटी से लेकर अपने घर की बहू की,

आँखों आँखों में नाप देते है वो पड़ोस की बेटी की स्कर्ट और बहू के पल्लू की निचाई, 

और कहते है उनमें नहीं बेहयाई। 

फिर आग मद्धम हो चलती है,

आज के हिस्से की पुराल भी खत्म हो चली होती है, 

कल फिर आग जलेगी, 

फिर उसके चारों ओर बुद्धिजीवी बैठेंगे, 

गर्माहट होगी बातों की... 

और फिर शुरू होगा 

इस घर से उस घर में झांकने का सफर।। 



©®चारु

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Charu Chauhan

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Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Kamlesh Vajpeyi · 3 years ago last edited 3 years ago

    भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी

  • Sonia Madaan · 3 years ago last edited 3 years ago

    Nice

  • Charu Chauhan · 3 years ago last edited 3 years ago

    thanks to both of you

  • Mayur Chauhan · 3 years ago last edited 3 years ago

    मार्मिक

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