फिर दबे पांव सर्दी आयी,
राजनीति की लौ अपने आप फड़फड़ाई,
बरसों से यही तो होता आया है
यही मात्र अड्डा है होता सर्दियों में,
राजनीतिज्ञ विशेषज्ञों और झूठे सामाज सुधारकों का।
कुछ पत्ती-पुराली, लकड़ी एकत्र कर
बनता है एक अलाव,
और गांवों में जो कहलाता है तप्पड़भोज....
खैर यहाँ बातें होती हैं अमेरिका से जापान की,
सड़कों से लेकर आकाश में उड़ते विमान की,
कभी किसी की अमीरी से किसी की लाचारी की,
चर्चा यहाँ आम होती है....
दूसरे की बेटी से लेकर अपने घर की बहू की,
आँखों आँखों में नाप देते है वो पड़ोस की बेटी की स्कर्ट और बहू के पल्लू की निचाई,
और कहते है उनमें नहीं बेहयाई।
फिर आग मद्धम हो चलती है,
आज के हिस्से की पुराल भी खत्म हो चली होती है,
कल फिर आग जलेगी,
फिर उसके चारों ओर बुद्धिजीवी बैठेंगे,
गर्माहट होगी बातों की...
और फिर शुरू होगा
इस घर से उस घर में झांकने का सफर।।
©®चारु
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी
Nice
thanks to both of you
मार्मिक
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