"इससे अच्छा तो पैसा बाँट दीजिए"

जब माता पिता अपनी जिंदगी बच्चों का भविष्य बनाने में लगा देते हैं और अपनी इच्छाओं को भी कई बार दबा देते हैं तो कम से कम वृद्धावस्था में तो उन्हें अपना जीवन अपने तरीके से जीने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।

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Charu Chauhan
Charu Chauhan 05 Dec, 2020 | 1 min read
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सुनिए... अगले महीने की 28 तारीख़ निकली है अपने सोम की शादी की। लड़की वालों और हमारे सभी बच्चों को भी जंँच रही है यह तारीख। आगे आप और देख लीजिए कि आप को क्या ठीक लगता है। शाम का चाय नाश्ता परोसते हुए सुमन जी ने पति ( लोकेश जी) से कहा। लोकेश जी ने भी चाय का घूंट लेते हुए कहा अरे भई, जब सब राजी हैं तो मुझे क्या दिक्कत होगी भला....?? मेरी शादी थोड़े ही ना है हा हा हा....... और इस तरह शाम की चाय में उन दोनों की हँसी की मिठास और बढ़ गयी।

लोकेश और सुमन जी के तीन बच्चे हैं बड़ा बेटा ओम, एक बेटी संगीता और सबसे छोटा बेटा सोम। लोकेश जी और उनकी धर्मपत्नी सुमन जी दोनों ही रिटायर्ड सरकारी अध्यापक है। ओम और संगीता की शादी हो चुकी है बस सोम की शादी भी अब कुछ दिनों बाद होनी है। तैयारियाँ भी जोरों शोरों से हो रही है। लोकेश जी जब भी अपने बच्चों को देखते तो बहुत खुश होते कि भगवान् ने क्या खूब बच्चे उन्हें दिए हैं। बच्चे कैसे अपनी माँ और उन्हें पूरा सम्मान देते हैं वरना आज कल के बच्चे तो.......!

ढेर सारी तैयारियों के बीच शादी का दिन भी बहुत जल्दी आ गया। पूरे रीति रिवाजों के साथ शादी होकर घर में प्रवेश हुआ छोटी बहू प्रिया का। छोटी बहू भी बिल्कुल बड़ी बहू ऋतु जैसी थी। सास, बहुएं मिलकर सारा काम करती और साथ ही गप्पे भी लड़ातीं। इसी तरह छह महीने बीत गए, प्रिया भी घर में अच्छे से रम गई। हमेशा की तरह लोकेश जी और सुमन जी शाम की चाय पी रहे थे। लोकेश जी बोले - सुनो सुमन, मुझे लगता है अब हमने अपने सारे कर्तव्य का निर्वाहन कर दिया है। अब हमे साथ में कुछ वक़्त गुजारना चाहिए। घर गृहस्थी को संभालने में जो सपने पूरे नहीं कर पाए....अब वक़्त है उन्हें पूरा करने का। सुमन जी पति को अचम्भे से देख रही थीं उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था। उनकी ऐसी शक्ल देख कर लोकेश जी हँस दिए और बोले - पहले हम उन उन जगह पर घूमने जाएंगे जहां जवानी में हम दोनों जाना चाहते थे । हाँ, जानता हूँ सब जगह तो अब सम्भव नहीं है । अब वो शरीर नहीं रहा लेकिन कुछ स्थानों पर तो जा ही सकते हैं ना......!

हाँ तो श्रीमती जी, पहले हम चलेंगे आगरा आपको ताजमहल देखना था ना....? आगरा में और भी ऐतिहासिक जगह है देखने के लिए । उसके बाद मथुरा, वृंदावन में भी कुछ दिन गुजारेंगे। भक्ति का आनन्द प्राप्त करेंगे। उसके बाद कुछ महीने बाद फिर चलेंगे चारों धाम की यात्रा पर निश्चिंत हो कर । याद है पिछले साल वर्मा जी गए थे उनसे पता किया है मैने खर्च वगैरह। सब आराम से हो जाएगा हमारी इतनी जमा पूंजी है। और अभी हम दोनों की पेंशन भी आती ही है।

लेकिन क्या ये सब इतनी आसानी से हो पाएगा... सुमन जी थोड़ी चिंता के साथ बोली। लोकेश जी बोले - क्यों भई, क्यों नहीं हो पाएगा। श्रीमती जी अभी हम दोनों ही शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह ठीक है। और मैं नहीं चाहता कि इस बोझ के साथ मरूं कि जिसने मेरा घर को संवारा, वित्तीय रूप से भी साथ दिया उसे दुनिया का एक भी कोना ना दिखा सका। कैसी बात करते हैं आप....?? सुमन जी ने डांट लगाते हुए कहा। आगे उन्होंने कहा - मेरा कहने का मतलब यह है कि बच्चे क्या सोचेंगे? वो ये तो नहीं सोचेंगे कि हमें अब बुढ़ापे में घूमने की लगी है।

लोकेश जी ने कहा कैसी बात करती हो तुम। तुम्हें पता है ना कि हमारे बच्चे हीरे जैसे है बिल्कुल। उन्हें भला क्या दिक्कत होगी। और वैसे भी हम अपनी किसी भी चीज के लिए बच्चों को परेशान नहीं करने वाले। खैर श्रीमती जी आप ले जाने वाले सामान की लिस्ट बनाइये फिर साथ में पैकिंग करेंगे। और चिंता ना करें शाम को मैं दोनों बेटों को बता दूँगा।

डिनर के वक़्त जब पूरा परिवार इकट्ठा था लोकेश जी ने अपने ट्रिप के प्लान के बारे में उन्हें बताया। दोनों बेटे एक दूसरे को देखने लगे लेकिन उस समय कुछ कह ना सके। दूसरे दिन ही ओम के कॉल करने के बाद संगीता मायके आ पहुंची। बेटी को यूँ अचानक देख सुमन जी और लोकेश जी के चेहरे खिल उठे। सुमन जैसे ही बेटी को गले लगाने लगी संगीता बोली हटो मम्मी.... आप मुझसे प्यार ही नहीं करती। भैया बता रहे थे कि आप दोनों अब ज्यादातर ट्रिप पर ही रहने वाले हो। मेरी याद नहीं आएगी क्या जब ? अपनी लाडली बेटी संगीता की बात सुनकर पति पत्नी दोनों अचंभे से बेटी की ओर देखने लगे। माँ फ़िर मनुहार करते हुए बोली - क्या हुआ संगीता? ऐसे क्यूँ बोल रही है?? माँ बाप बच्चों को कभी भूलते हैं क्या... और हमारा घूमना जाना इसमें कहाँ से बीच में आ गया बेटा? कुछ कुछ दिनों की ही तो बात होगी।

तभी दोनों बेटे और बहुएं भी वहाँ आ पहुंची। ओम बोला और नहीं तो क्या माँ, अब आप लोगों को ऐसे घूमने जाने की क्या आवश्यकता है। चारों धाम तो फ़िर भी समझ आते हैं लेकिन उसके अलग भी..... यह हमारी समझ से बाहर है। सोम भी ओम के सुर में सुर मिला कर कहने लगा - और पापा जी कितना खर्च भी होगा य़ह भी तो देखो।

यह सुनकर लोकेश जी की त्यौरियां चढ़ गई। और बोले- खर्च की बात क्या है आखिर? अभी हम दोनों की इतनी सामर्थ्य है कि अपना खर्च ख़ुद कर सकें। तुम बच्चों पर इसका बोझ बिल्कुल नहीं पड़ेगा। हमने इसके लिए अपनी अलग धनराशि जोड़ रखी है तो तुम लोग अपनी चिंता मत करो।

संगीता कहने लगी, पापा आपने खुद इतना पैसा अभी भी जोड़े रखा है तब भी यह सब फालतू का क्या है? और आपके पास पैसे इतने ही हैं और खर्च करने का मन है तो इससे अच्छा हम सबको पैसा बाँट दीजिए। पैसा ऐसे खराब क्यूँ करना?? आखिर हम आपके बच्चे ही हैं।

यह सब देख सुनकर पति पत्नी दोनों का सिर चकराने लगा। खुद को संभाल कर माँ बोली कि कैसी बातें कर रहे हों तुम लोग??? और गुर्राते हुए लोकेश जी बोले - बस बहुत हुआ। हमनें अब तक की तुम्हारे प्रति अपनी सारी जिम्मेदारियां निभायी हैं। यहाँ तक कि तुम्हारी शादी में भी तुमसे एक रुपया नहीं लिया। तुम्हारे हनीमून तक का हमने अरेंज किया। हम तो कभी समझ ही नहीं पाए कि हमारे बच्चे इस बीच इतने लालची और छोटी सोच के हो गए।

तो बच्चों कान खोल कर सुन लो हमारे पैसे पर सिर्फ हमारा हक है चाहे जैसे खर्च करें। हाँ... अगर हमने अपनी ज़िम्मेदारी से मुँह मोड़ कर ऐसा फैसला लिया होता तो शायद हम गलत होते लेकिन हमने अपने सारे फर्ज निभा दिए हैं । हम दोनों अपने ये दिन अपने हिसाब से जिएंगे ये बात गांठ बाँध लो तुम सब।

हमेशा शांत और सरल स्वभाव के रहने वाले पिता को ऐसे गुस्से में देख कर बच्चों की जुबान मुँह में ही जम गई। सोम ने हिम्मत करके पूछा, माँ पापा आपकी टिकट कब की बुक करानी है?? भाभी और प्रिया आपके जाने की पूरी तैयारी कर देंगीं । आपकी जैसी मर्जी है वैसा ही होगा। संगीता ने मम्मी पापा से माफ़ी मांगी और तुरंत ससुराल के लिए रवाना हो गयी। बाकी सब अपने अपने कमरे में चले गये। लोकेश जी श्रीमती जी को देख कर मुस्कुराए। सुमन जी कुछ बोलती उससे पहले ही लोकेश जी ने कहा - यह सब कहना ज़रूरी था। चलने की तैयारी करो।

मेरे विचार- जब माता पिता अपनी जिंदगी बच्चों का भविष्य बनाने में लगा देते हैं और अपनी इच्छाओं को भी कई बार दबा देते हैं तो कम से कम वृद्धावस्था में तो उन्हें अपना जीवन अपने तरीके से जीने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। और उनकी जमापूंजी पर सिर्फ उनका हक है वो चाहे जैसे उसे खर्च करें।


धन्यवाद

©चारु चौहान


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Charu Chauhan

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Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Namrata Pandey · 3 years ago last edited 3 years ago

    Well penned

  • Charu Chauhan · 3 years ago last edited 3 years ago

    hey thanks

  • Akshita singh · 3 years ago last edited 3 years ago

    Appreciable👐❣️

  • Charu Chauhan · 3 years ago last edited 3 years ago

    thanks dear @Akshita

  • Mayur Chauhan · 3 years ago last edited 3 years ago

    Well written

  • Chetna Arora Prem · 3 years ago last edited 3 years ago

    Well written

  • Charu Chauhan · 3 years ago last edited 3 years ago

    thanks @Chetna ji

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