मकर संक्रांति मतलब सूर्य उत्तरायण। मकर संक्रांति के दिन सुबह जल्दी उठकर तिल के पानी से स्नान करना फिर उसके बाद दान करना बचपन से ही देखा। हमारे यहाँ उस दिन व्रत भी रखा जाता है। बचपन से ही व्रत रखना प्रारम्भ कर दिया था। इस दिन खिचड़ी खाने का मजा ही और लगता है बिल्कुल वैसा जैसे गंगा स्नान वाले दिन लगता है। हमारे यहाँ कहते है कि गंगा स्नान के लिए जिस खिचड़ी का प्रारम्भ होता है संक्रांति के दिन उसका आखिरी हो जाता है। मतलब उसके बाद चावल और उड़द के दाल की खिचड़ी नहीं खाते। हालांकि समय बदलने के साथ साथ यह भी बदला है। दोपहर में पतंग उड़ाते हैं। घर के बने तिल के लड्डू का स्वाद भी लाजवाब लगता है।
बहुत सारी और भी यादें हैं मकर संक्रांति से जुड़ी। लेकिन जो सबसे खास और महत्वपूर्ण है... वह है स्कूल वाली संक्रांति से जुड़ी। मैंने अपनी शिक्षा शिशु मंदिर से प्राप्त की है। वहाँ त्योहारों का अलग ही रूप होता है। वहाँ बच्चों को शुरू से ही संस्कृति के बारे में जानकारी दी जाती है। मस्ती के साथ साथ वहाँ संस्कृति के मूल्यों से भी अवगत कराया जाता है।
मकर संक्रांति के उत्सव में स्कूल में यज्ञ किया जाता था। उसकी तैयारी में सब विद्यार्थी अपना अपना योगदान देते थे। सब बच्चे अपने घर से अपनी इच्छा व सामर्थ्य के अनुसार सामान ले कर जाते थे। एक लकड़ी या उपला (कंडे) लाने वाले का भी उतना ही सम्मान होता था जितना चावल, दाल या घी लाने के बाद। सब अध्यापक मिलकर ईंट के चूल्हे पर खिचड़ी पकाते थें। उसके बाद यज्ञ प्रारम्भ होता था। वहाँ हम सब विद्यार्थी बारी बारी से यज्ञ में आहुति देते थे। मंत्र उच्चारण करते थे। यज्ञ के पश्चात् सभी को पंक्ति में बैठाकर प्रसाद के रूप में खिचड़ी मिलती थी। वह खिचड़ी घी खाने में जो आनंद मिलता था वह मेरे मन में अभी भी बसा हुआ है।
बचपन का यह संस्मरण मेरे हृदय में आज भी अंकित है।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.