घरौंदा

सपनों के घरौंदे के बनने से बिखरने तक का सफर।

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Charu Chauhan
Charu Chauhan 03 Feb, 2021 | 1 min read
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पाई पाई जोड़कर बनाया एक घरौंदा, 
अरमानों के पर्दे टाँगे, 
फिर हर कोने में उम्मीदों के पौधों लगाए। 

त्योहारों की साड़ी हर ईंट के नीचे दफनाई, 
खून पसीने से की चारों दीवारों की पुताई, 
तब जाकर खिड़कियों पर खुशियों की झालर लहराई। 

आगे, बच्चों के आगमन से हर कोना मुस्कुराया, 
उनकी किलकारी से पूरी हो गई सजावट, 
आखिर खत्म हुई घरौंदे की मरम्मत और अधूरी बुनावट। 

समय बीता.....
 
माँ-बाप आज शोक में है, 
उनके घरौंदे को बांटने की हो रही तैयारी, 
किसी के हिस्से में पर्दे आए, किसी ने झालरें उतारी। 

आशाएं, निराशाओं में बदल रही, 
क्यूँ बनाया घरौंदा, यह टीस उठ रही, 
नींव त्याग की डगमगा गई, ढह गई घरौंदे की दीवारें।। 


स्वरचित © चारु चौहान

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Charu Chauhan

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Comments

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  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    सुन्दर

  • Charu Chauhan · 3 years ago last edited 3 years ago

    जी शुक्रिया

  • Mayur Chauhan · 3 years ago last edited 3 years ago

    Nice

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