पाई पाई जोड़कर बनाया एक घरौंदा, अरमानों के पर्दे टाँगे, फिर हर कोने में उम्मीदों के पौधों लगाए। त्योहारों की साड़ी हर ईंट के नीचे दफनाई, खून पसीने से की चारों दीवारों की पुताई, तब जाकर खिड़कियों पर खुशियों की झालर लहराई। आगे, बच्चों के आगमन से हर कोना मुस्कुराया, उनकी किलकारी से पूरी हो गई सजावट, आखिर खत्म हुई घरौंदे की मरम्मत और अधूरी बुनावट। समय बीता..... माँ-बाप आज शोक में है, उनके घरौंदे को बांटने की हो रही तैयारी, किसी के हिस्से में पर्दे आए, किसी ने झालरें उतारी। आशाएं, निराशाओं में बदल रही, क्यूँ बनाया घरौंदा, यह टीस उठ रही, नींव त्याग की डगमगा गई, ढह गई घरौंदे की दीवारें।।
घरौंदा
सपनों के घरौंदे के बनने से बिखरने तक का सफर।
Originally published in hi
Charu Chauhan
03 Feb, 2021 | 1 min read
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Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
सुन्दर
जी शुक्रिया
Nice
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