मैं बनी पूनम, तो वो चाँद सा बाँहों में उतरा,
अमावस की काली रात में भी चंदन सा जकड़ा।
अज़ल प्रेम के सागर में गोते लगाते-लगाते ...
सावन, भादो और बसंत दोनों पर साथ ही गुजरा।
जहाँ मैं स्वाभिमानी, निडर सी लड़की,
वहीं वो चंचल और भावुकता से पूर्ण लड़का।
हम दोनों में एक दिन और एक रात,
दिशाओं में भी जैसे एक पूरब और पश्चिम ।
लेकिन दोनों का मिलाप कराती जैसे कोई संध्या,
अनुनय विनय करती, पुरानी पाती पढ़ती खूबसूरत ऊषा।
सुनो प्रिय,
पवित्र प्रेम की परिभाषा तुमसे सीखी,
जीवन में ठहराव का गहना भी तुमसे पाया,
पाने के साथ-साथ प्रेम लुटाना भी तुमसे जाना,
मेरे कोरे से जीवन में रंगीला हस्ताक्षर तुमने किया।
कटीलीं झाड़ी रूपी सफ़र में,
हरियाली का बीज़ जो तुमने बोया था...
देखो आज हरा भरा हो गया।
तुम्हारे साथ से जीवन में, काँटों के साथ खुशियों का गुलाब खिल गया।।
स्वरचित
©®चारु चौहान
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Lovely❤️
Woww👌
thank you guys....
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