रात का काला अंधेरा छाया था अमावस की रात जो थी। सभी घरवाले आज एक शादी में गये हुए हैं किन्ही कारणों से बस सुधा शादी में नहीं जा पायी थी। आज वह घर पर अकेली थी। तो आज कुछ जल्दी ही बेड पर आ गई थी,,, रोज तो थक कर जैसे ही बिस्तर पर आती है नींद कब आ जाती है पता ही नहीं चलता। लेकिन आज नींद आँखों से कोसो दूर थी बहुत बेचैन था उसका मन आज।
कितना अजीब होता है ना ये मानव मन भी ख़ाली हो तब भी उसे चैन कहाँ....? कुछ ऐसा ही था आज सुधा के साथ भी।अनायास ही सुधा अपने अतीत और वर्तमान की तुलना करने लगी थी कि कैसे वो आज सिर्फ़ सिमट कर रह गयी है बच्चों और किचन तक....और कैसे वो अपने स्कूल-कॉलेज के समय में टॉपर तो नहीं लेकिन इंटेलिजेंट में ही गिनी जाती थी। कितने ईनाम जीते थे उसने अलग-अलग प्रतियोगिताओं में जैसे डांस, कुकिंग, पेंटिंग । यही सब उसके शौक भी थे और जुनून भी । फिर जिस टाईम मनोज का रिश्ता उसके लिए आया था। वो चाहती थी कि अपनी डांस क्लासेज शुरू करे जिससे वो अपने करियर को नया आयाम दे सके। लेकिन बाऊ जी ऐसा अच्छा रिश्ता बिल्कुल छोड़ना नहीं चाहते थे। हार कर मुझे ही अपने सपने को उस वक़्त छोड़ना पड़ा था.....सोचा था कि शादी के बाद अपना सपना पूरा कर लेगी। शायद मन को उस समय कुछ ऐसी ही तसल्ली की जरूरत थी जो मैंने खुद ही खुद को दी थी।
सौभाग्य से ससुराल भी बहुत अच्छा मिला। मनाही नहीं थी कुछ भी आगे करने की। लेकिन एक संयुक्त परिवार होने और घर की बड़ी बहू होने के कारण जिम्मेदारियां भी बड़ी थी तो कर ही नहीं पाई कुछ । फिर दो साल बाद ननद की शादी हुई और उसके एक साल बाद देवर की शादी.....और इसी बीच आ गयी हमारी एक नन्ही सी परी 'नीली' भी हमारे जीवन में। बच्ची के बाद व्यस्तता और बढ़ गई। बेटी की परवरिश ही उसकी प्राथमिकता बन गयी। हाालाँकि शादी के एक साल बाद ही देवर और देवरानी जाॅब के कारण दूसरे शहर शिफ्ट हो गये और परिवार में सिर्फ़ सास, ससुर जी, मनोज, नीली और मैं ही रह गयी । समय पंख लगाकर उड़ता चला गया। लेकिन मेरी जिंदगी वही उलझी रह गई जो सुबह की साफ-सफाई, नाश्ते से शुरू होकर रात्रि के खाने और बर्तन पर खत्म होती। बस इन्हीं जिम्मेदारियों में उसकी जिंदगी गुजरे जा रही थी। सुधा को किसी से शिकायत नहीं थी लेकिन मन के किसी कोने में वो डांस क्लासेज चलाने का सपना अभी भी था...जो वो जाने कब से संजोए हुए थी। नीली बड़ी हो रही थी और कभी-कभी नीली को सिखााने के बहाने मैं खुद भी थिरकने लगी थी। लेकिन मन में एक शंका बार बार आ रही थी कि क्या वह अब फिर से पहले जैसा अच्छा कर पायेगी ....?? इसी उधेेड़ बुन में लगी थी सुधा कि अचानक दरवाजे की घंटी बजने से उसकी निंद्रा भंग हुई। जो लगभग दो घंंटो से एक ही स्थिति में बैठी सोचे जा रही थी कभी अपना अतीत तो कभी वर्तमान। पूरा परिवार शादी में से वापस आ चुका था और साथ ही वापस आया था सुधा का खोया आत्मविश्वास भी....उसके जीवन की अमावस की रात भी बीत चुकी थी। अब वो किसी भी हाल मे अपना सपना पूरा करना चाहती थी। अपने सपनों की उड़ान भरना चाहती थी। हाँ...वो उड़ना चाहती थी।
अगली ही सुबह सुधा ने अपनी मन की बात पति मनोज और सास ससुर को बतायी।उसके इतने साल के समर्पण और प्यार का ही नतीजा था शायद कि उन्होंने खुशी के साथ उसके फैसले का स्वागत किया। थोड़ी ज़िम्मेदारी नीली की सास-ससुर ने ली। थोड़ा या कहे बहुत सारा साथ दिया मनोज ने सुधा की सपनो की उड़ान भरने में।
बहुत ही जल्दी डांस क्लासेज शुरु हो चुकी थी सुधा की मेहनत रंग ला रही थी l हालांकि आसान नहीं था इतने समय बाद फिर से हुनर को निखारना और साथ ही घर, बेटी की ज़िम्मेदारी निभाना। आज 3 साल बाद सुधा अपने यहां की अच्छी डांस टीचर मे से एक है। अपनी जैसी कई की अब उत्प्रेरना भी सुधा बन चुकी है...।।।
लेकिन अगर उस दिन वो फ्री होकर ना बैठी होती और अपने लिए सोच नहीं रही होती तो शायद ये कभी संभव ना हो पाता और सपना.... सपना ही रह जाता। हकीकत तो कभी बन ही नहीं पाता। दोस्तों, अपने आप को भी थोड़ा समय देना उचित है और सोचिए अपने सपनों के निर्माण के बारे में.....!
© चारु
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Nice beautifully written
Nice.
बहुत बहुत आभार #सोनिया जी
Thnku @jyoti
Nice
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