वक़्त

समय के साथ-साथ इंसान क्या क्या अनुभव कर लेता है उसी पर आधारित है मेरी यह कविता।

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Charu Chauhan
Charu Chauhan 01 Sep, 2020 | 0 mins read
Society poetry Shayri

बहुत करीब से देखा है मैंने उन धुंधली सी दीवारों को और वक़्त के साथ उन पर लगे जाले को,


चुभन उन नश्तर बने शब्दों के मायनों को और नक़ाब में छुपे दोहरे चेहरे को,


रेत पर बनायी जैसी विश्वास की लकीरों को, उलझे अमरबेल के वृंत जैसी मुस्कराहट को,


हाँ, बहुत करीब से ही देखा है मैंने रंगी पुती दीवारों को भी और उनके पीछे छिपी कालिख को।।


© चारु


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Charu Chauhan

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Comments

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  • Kumar Sandeep · 4 years ago last edited 4 years ago

    उत्कृष्ट रचना

  • Charu Chauhan · 4 years ago last edited 4 years ago

    बहुत बहुत धन्यवाद sandeep ji 🙏

  • Mayur Chauhan · 4 years ago last edited 4 years ago

    शब्दों में बहुत गहराई है 👍

  • Jyoti · 4 years ago last edited 4 years ago

    Beautifully written

  • Charu Chauhan · 4 years ago last edited 4 years ago

    Thanks Jyoti

  • Yogesh Kumar · 4 years ago last edited 4 years ago

    Beautiful

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