अरी ओ..... दुलारी, कहाँ है री तू ??
दुलारी - हाँ अम्मा, यहीं हैं हम। क्या हुआ जो इतना आवाजें लगा रहीं हो कोई सोना मिल गया क्या तुम्हें??? और सत्तो अम्मा तनिक धीरे बोलो कल भूमि और यश की परीक्षा है। वो दोनों अंदर पढ़ रहें हैं।
सत्तो अम्मा - क्या हर वक़्त पढ़ाई-पढ़ाई। यों ना कि छोरी को थोड़ा घर वार के काम सिखा दे।
दुलारी अम्मा के स्वभाव से पूरी तरह परिचित थी इसीलिए बस मुस्कराई और बोली - अरे अम्मा... ये सब छोड़ो और ये बताओ कैसे आना हुआ सुबह सुबह?
अम्मा - अरे हाँ... मैं तो भूल ही गई। तू कह रही थी ना अभी कि सोना मिल गया क्या। अब क्या बताऊ, वो विमला है ना उसके तो भाग फूट गए। एक दम कोयला बहू लाया है बेटा एक दम कोयला। सुबह सुबह सोच रही थी बहू ही देख आऊं कि शादी के समय तो मैं हरिद्वार गई थी लेकिन देख कर मेरा तो जी ही खराब हो गया। बड़ी ही काली बहू ले आया है घर में बेटा ।
दुलारी - अच्छा, मैंने तो सुना है बहू बहुत गुणी है। नौकरी भी अच्छी करती है और स्वभाव भी सरल है। तभी लड़के ने उसे पसंद किया है। बहू ने आते ही घर में भी सबको अपना बना लिया है।और अम्मा विमला बहन का लड़का भी तो सांवले रंग का ही है। क्या हुआ अगर बहू भी सांवली आ गई।
और भला... क्या तुम अभी भी काली गोरी के चक्कर में पड़ी हो। तुम्हें याद है अम्मा अपनी सरस्वती की बहू...गौर वर्ण, मृग नयनो वाली अप्सरा। जिसकी तारीफ करते करते आप महीनों ना थकी थी। कल ही पता चला बेचारी सरस्वती बहुत दुःखी है उस अप्सरा से। खाने तक पर पाबंदी लगा दी है बेचारी कहीं की। ना कहीं अपनी मर्जी से कहीं आ सकती है और ना जा सकती है।
लेकिन अम्मा कहाँ मानने वाली थी। वो खुद को सही साबित करने के लिए ना जाने कैसे कैसे तर्क दे रहीं थीं। उनके लिए लड़का काला होना भी कोई बड़ी बात नहीं थी लेकिन लड़की गोरी ही होनी चाहिए।
सत्तो अम्मा और दुलारी की बातें अंदर बैठी भूमि भी सुन रही थी। उठ कर एक दफा अपना श्यामल चेहरा आईने में निहारा और बाहर अम्मा के पास आ खड़ी हुई।
हमेशा की तरह अम्मा शुरू हो गयीं अरे दुलारी... देख हमार भूमि इतनी भी काली नहीं है तनिक ध्यान दे। उबटन लगाया कर हल्दी फिर देख कितना निखरता है चेहरा।
कमरे में विज्ञान के पन्ने पढ़ने वाली भूमि बाहर भी आज कहाँ चुप रहने वाली थी।
पूरे आत्मविश्वास के साथ अम्मा के सामने जा खड़ी हुई और बोली दादी अम्मा आप हमेशा माँ को यही नसीहत क्यूँ देती हैं?? मेरा रंग अगर उजला नहीं है तो इसमें कौन सी बड़ी बात है? काली, गोरी तो सिर्फ त्वचा है और त्वचा भी क्या है बस मेलानिन। जो किसी में ज्यादा हुआ तो रंग सांवला कम हुआ तो गौरा। इंसान की असली पहचान तो उसके दिमाग और दिल से होती है। इस मेलालिन के लिए इतना भेद भाव क्या करना।
और दादी अम्मा गोरा पैदा होने से भी क्या हो जाता है? क्योंकि ना जाने कितनी गोरी लड़कियां भी किसी हादसे के बाद वैसी नहीं रह जातीं। कभी घरेलु हिंसा, एसिड अटैक या किसी और हादसे में गोरे इंसान भी अपनी असली त्वचा खो देते हैं। तो क्या वे खूबसूरत नहीं रहते??? रहते हैं... क्योंकि शक्ल बदलने से उनका दिमाग या मन नहीं बदल जाता।
तभी 12 साल का यश भी कमरे से बाहर आया और अपनी दीदी का साथ देने लगा।
सत्तो अम्मा मन में सोचने लगी कि भूमि कह तो सही ही रही है। लेकिन पुरानी सोच को पूरी तरह बदल पाना आसान नहीं होता। इसलिए जुबान से अम्मा अब भी भूमि से सहमत नहीं थी। झुंझलाती हुई बोली - भूमि ऐसे नहीं होता जैसे तू कह रही है। गौरा रंग तो गौरा ही होता है। और बड़बड़ाती हुयी अपने घर को चली गईं।
लेकिन दुलारी को अपनी बेटी की अक्ल और समझ पर बहुत प्यार आ रहा था। उसने भूमि और यश की बलैया ली और बोली - बेटा, पूरा समाज एक दम से नहीं बदलेगा। एक एक परिवार से ही बदलाव आएगा। मुझे गर्व है कि हमारा परिवार इस काले गौरे के भेद से ऊपर उठ चुका है। मुझे उम्मीद है कि जल्दी ही अम्मा जैसी सोच वाले इंसान भी इस बात को स्वीकार करेंगे कि त्वचा का रंग कोई भी हो...लेकिन हम समान हैं।।
मौलिक व स्वरचित
© चारु चौहान
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Nice story 👍
Inspiration story
Thanks guys
very nice story
Thanks @Babita_mam
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