लौट आयें कदम उसकी चौखट से दबी जुबान,
बात मेरी उसकी, अब एक कॉल की मोहताज है,
वीडियो कॉल भी अब कहाँ अच्छे लगते है,
ख़ूबसूरत लगने वाले ढलते दिन, दहकते से लगते हैं,
लगती हृदय गति अब बस कंपन मात्र है,
चल रहीं हैं सांसे, पर हर साँस जैसे अंगार है,
कुछ ज़ख़्म सी रही हूँ ढलकते अश्रुओं से,
पर कुछ को उसके हाथों मरहम की दरकार है,
कुछ पल आराम चाहिए का नारा दम तोड़ रहा है
हद से ज्यादा आराम, सुकून को निचोड़ रहा है,
"स्वीट होम" में रहना कैद सा लगने लगा है,
कुछ तो है विचित्र, जो ख़ुद में भी खलने लगा है,
कोशिशें तमाम निष्फल होती नज़र आ रहीं हैं,
बढाएं क़दम लौट आयें उसकी चौखट से यूहीं
क्योंकि जानती हूँ बख़ूबी, इस पल दूरी है ज़रूरी।।
स्वरचित व मौलिक
© चारु चौहान
Comments
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शिक्षात्मक रचन
Bahut badiya👌👌 sach me aaj yahi situation he
बहुत बहुत धन्यवाद दोस्तों 🙏
So true and melted with amazing situation ..
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