अंधविश्वास

अंधविश्वास घातक होता है फिर चाहे अपनों पर ही किया जाये।

Originally published in hi
Reactions 0
865
Nidhi Gharti Bhandari
Nidhi Gharti Bhandari 20 Jul, 2020 | 1 min read
Difficulties of old age

मैं काफी देर से अखबार पर नज़रे गड़ाये एक बहुत बड़े लेखक का एक लेख पढ़ रहा था। देश आज भी बहुत से अंधविश्वासों से जकड़ा हुआ है....तभी पड़ोस के शर्मा जी ने आकर बताया कि पिछली गली वाले गुप्ता जी की माँ भगवान को प्यारी हो गयी। पलभर में सारी पुरानी यादें मानो मेरी आँखों के सामने नाचने लगी हों।

 तकरीबन महीनेेभर पहले ही तो रामेसरी आँटी मेरी दुकान पर आयी थी। "बेटा एक ठंडे की बोतल देना" साड़ी के पल्लू से पसीना पोछकर उसी के छोर पर लगी गांठ से आँटी ने वो इकलौता नया पचास का नोट निकालकर आगे बढ़ाया। साथ आई नन्हीं गुड़िया चॉकलेट के लिये जिद करने लगी,"बेटा एक चॉकलेट भी देना पर ज़रा जल्दी करना, मैं वैध से अपनी दवाई भी ले आऊँ।"

पचास का नोट काफी देर तक हाथ में थामे मैं गहरी सोच में डूबा रहा, यह धर्मसंकट अकसर ही मेरे सामने आकर खड़ा हो जाया करता था। अंधविश्वास में ही तो जकड़ी हुई थी रामेसरी आँटी, जो सिर्फ़ भगवान पर ही नहीं बल्कि कई बार इंसानों पर भी हो जाता है। बहू ने फिर पचास का नोट थमा दिया और आँटी की दवाई का क्या?

मैने ड्रॉअर से एक दस का नोट निकालकर उसी पचास के नये नोट के ऊपर रखकर आँटी को थमा दिया, "ये लीजिए आँटी आपका सामान और ये बचे हुये पैसे। क्या कुछ फ़ायदा हो रहा है इस नये वैध की दवाई से?"बस यूँ ही पूछ बैठा मैं।

"हाँ बेटा पहले के मुकाबले अब काफी आराम है" जाते जाते आँटी फिर वही सदाबहार मुस्कान बिखेरकर जाने लगी। 

"ईश्वर करे आप जल्द अच्छी हो जायें" कुछ निराशा मिश्रित स्वर में मैने कह ही दिया, यह जानते हुये भी कि अब और कितने दिन नहीं मालूम। 

आँटी पलटकर मेरे कान में बुदबुदायी, "चंद दिनों की मेहमान हूँ किसी से कहियो न बेटा, सब जानती हूँ मैं। उस दिन सुना था डॉक्टर को कमलेश से कहते हुये फिर भी बच्चों का मन रखने को वैध जी की दवा खा रही हूँ। कमलेश को ही बताया था किसी ने इस वैध के बारे में"

उफ्फ हद दर्जे का भोलापन, और बेटे पर विश्वास नहीं अंधविश्वास। कितना कहा मैने गुप्ता से कि भले ही कोई उम्मीद न बची हो पर अपनी ओर से पूरे प्रयास किये जायें मगर कमबख़्तों ने दवाई महंगी होने के चलते बंद ही करवा दी। अब वैध का यह ढकोसला....और उसके लिये भी पैसे देने को तैयार नहीं...मै मन ही मन कुढ़ रहा था।

"बच्चे अच्छे हैं मेरे पर जब किस्मत ही खराब हो तो कोई क्या करे बेटा?" आँखों में आँसू लिये बेचारी आँटी जाने लगी और मैं लाचार उस दिन भी बस देखता ही रहा उन्हें जाते हुये भी और दवाई लेकर लौटते हुये भी, जब तक कि वह मेरी आँखों से ओझल नहीं हो गयी। 

कई बार मन किया कह दूँ कि छली जा रही हो अपनी संतान से ही। नज़र कमज़ोर है तो कम पैसे दिये जाते हैं तुम्हें पर फिर लगा कैसे तोड़ दूँ बेचारी का दिल, बस जितना बन पड़ा चुपचाप निभाता रहा।

आखिरकार यह राज़, राज़ ही रह गया हमेशा के लिये सोचकर ही मेरी आँखों में नमी तैरने लगी। खुद को संभालते हुये मैं चल पड़ा आँटी के अंतिम दर्शन करने।

निधि घर्ती भंडारी

हरिद्वार, उत्तराखंड

0 likes

Published By

Nidhi Gharti Bhandari

Nidhi Gharti Bhandari

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.