लालच का फल(बाल कहानी)

लालच के कारण एक दिन हम अकेले पड़ जाते हैं।

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Nidhi Gharti Bhandari
Nidhi Gharti Bhandari 29 Jun, 2020 | 1 min read

रोहन एक शांत और खुद में खोया रहने वाला बच्चा था। उसके पैदा होते ही उसकी माँ चल बसी। पापा दूसरे शहर में नौकरी करते थे इसलिये सुबह घर से निकलकर देर शाम तक ही वापस लौट पाते थे। ऐसे में बूढ़ी दादी ही उसकी देखभाल किया करती थीं, जो अधिकतर बीमार ही रहती थीं। जैसे ही रोहन पांच साल का हुआ उसके पापा ने उसका दाखिला पास के ही एक प्राइमरी स्कूल में करवा दिया। अपने स्कूल के पहले दिन रोहन बहुत डरा हुआ था। पापा तो उसे क्लास में छोड़कर अपने काम पर चले गये लेकिन उसका मन वहाँ बिल्कुल भी नहीं लगा। हालांकि वहाँ उसकी उम्र के बहुत सारे बच्चे थे मगर रह-रहकर उसे दादी और घर की याद आ जाती और वह रोने लगता। जैसे ही जोर से टनटन...टनटन....घंटी बजी और सारे बच्चे क्लास छोड़कर बाहर दौड़ने लगे तो रोहन ने समझा छुट्टी हो गयी लेकिन फिर कुछ बच्चों ने बताया कि यह लंच ब्रेक हुआ है। रोहन एक बार फिर उदास हो गया। उसने देखा कि काफी सारे बच्चे मैदान के कोने में घेरा बनाये खड़े हैं और कुछ तो जोरों से "चूरन वाली आँटी आ गयी..." जैसा कुछ चिल्ला रहे हैं। कुछ देर सोचने के बाद वह भी वहाँ पहुँच गया।

वहाँ पहुँचकर देखा तो एक आँटी वहाँ रेड़ी लगाये खड़ी थी। वहाँ पर रखी हुई चटपटी अनारदाने की गोलियाँ, खट्टी-खट्टी इमली, चौलाई की लड्डू, मूँगफली-गुड़ की पट्टी और मनपसंद बेसन के लड्डू देखकर तो उसके मुँह में पानी ही आ गया। बड़े गौर से रोहन बच्चों को खाने पीने की अलग अलग चीजे खरीदते देख रहा था। "सबसे ज्यादा बिक रहा है खट्टा मीठा काला चूरन हम्म...शायद तभी आँटी का नाम भी सबने चूरन वाली आँटी रख दिया होगा हाहाहा...!!!"खुद से बातें करते करते ही वह जोर से हँस पड़ा। अचानक ही आँटी ने उससे भी पूछा, "ऐ बेटा तू क्या लेगा?" रोहन झेंपते हुये वापस अपनी क्लास में जाने लगा क्योंकि चीज खरीदने को तो उसके पास पैसे ही नहीं थे। तभी आँटी ने उसे कहा," रूक, क्या हुआ... पैसे नहीं है? कोई बात नहीं। यह ले..."कहते हुये उन्होंने कुछ संतरे के फ्लेवर वाली टॉफियाँ और एक पुड़िया में भरा खट्टा मीठा काला चूरन रोहन को थमा दिया। रोहन की खुशी का तो मानो कोई ठिकाना नहीं था। 

धीरे धीरे रोहन अपने सहपाठियों से घुल मिल गया। अब उसे स्कूल जाने में भी बहुत मज़ा आने लगा था लेकिन उसे सबसे ज्यादा इंतज़ार रहता था आँटी का, जब अपने पास पैसे होते तो कोई मनपसंद चीज खरीद लेता वरना कई बार आँटी मुफ्त में ही उसे कुछ न कुछ खाने को दे दिया करती।

चूरन बेचने वाली आँटी का बेटा कन्हैया भी रोहन की क्लास में ही पढ़ता था और रोहन का पक्का दोस्त बन चुका था। जब वे दोनो माँ-बेटा खाना खाते तो रोहन आँटी की रेड़ी की देखभाल किया करता था। आँटी भी रोहन को खूब लाड़ करती थी और कई बार कन्हैया के साथ उसे भी अपने हाथों से खाना खिलाया करती थी। आँटी को देखकर अक्सर रोहन सोचा करता कि अगर उसकी माँ जिंदा होती तो उसे भी ऐसे ही लाड़ करती। 

एक दिन रोहन ने देखा कि उसकी क्लास में पढ़ने वाले राजू के पास संजू की जादुई पेंसिल है वहीं जो उसने टीवी पर देखी थी और उससे कागज पर जो भी चीज बनायी जाती है वह असलियत में सामने आ जाती है। रोहन ने राजू से कहा," राजू ज़रा एक बार मुझे भी तो लिख लेने दे अपनी जादुई पेंसिल से, फिर मैं तुझे वापस कर दूँगा।"

मगर राजू ने न सिर्फ़ पेंसिल देने से मना कर दिया बल्कि वह तो रोहन को चिढ़ाने लगा। रोहन को बहुत गुस्सा आया उसपर और वह राजू की पेंसिल हासिल करने की योजना बनाने लगा।

जब सभी बच्चे मैदान में प्रार्थना करने गये तब रोहन तबियत खराब होने का बहाना बनाकर क्लास में ही रुक गया और उसने राजू के बैग से पेंसिल निकाल ली। कुछ देर बाद जब राजू को अपनी पेंसिल नहीं मिली तो उसने मास्टर जी से शिकायत कर दी कि क्लास के किसी बच्चे ने उसकी पेंसिल चुरा ली है। मास्टर जी हर एक बच्चे की तलाशी लेने लगे, यह देखकर रोहन बहुत डर गया तो उसने घबराहट में पेंसिल कन्हैया के बैग में डाल दी। 

जब मास्टर जी ने कन्हैया की तलाशी ली तो उन्हें वह पेंसिल उसके बैग में मिली और रोहन साफ बच गया। छुट्टी के वक्त रोहन ने देखा कि कन्हैया और चूरन वाली आँटी मास्टर जी के साथ हैडमास्टर साहब के ऑफिस बाहर खड़े हैं। सारी रात भर रोहन सो नहीं सका और अगले दिन उसने देखा कि कन्हैया स्कूल नहीं आया था।

उसने मास्टर जी को सब कुछ सच-सच बताने की सोची लेकिन मास्टर जी तो कुछ सुनना ही नहीं चाहते थे। बाकी दोस्तों से रोहन को पता चला कि राजू के पापा मास्टर जी के गहरे दोस्त थे इसलिये उनके कहने पर कन्हैया को स्कूल से निकाल दिया गया था।

रोहन भागा-भागा कन्हैया के घर पहुँचा तो वहाँ उसने देखा कि आँटी और कन्हैया शहर छोड़कर गाँव के लिये निकलने ही वाले हैं। आखिरकार उसकी आँखों से पश्चाताप के आँसू बहने लगे। उसने फूट फूटकर रोते हुये आँटी को बताया, "आँटी मुझे माफ कर दो, यह सब मेरी वजह से हुआ है। राजू की पेंसिल कन्हैया ने नहीं बल्कि मैने चुरायी थी लेकिन जब मास्टर जी तलाशी लेने लगे तो डर के मारे मैने वह पेंसिल कन्हैया के बैग में डाल दी।"

सब कुछ जानने के बाद आँटी ने बड़े प्यार से रोहन के आँसू पोछे और कहा, "अब कुछ नहीं हो सकता बेटा। वैसे भी हम गरीब लोग हैं इसलिये हमारा भरोसा किसी ने नहीं किया। मैं जानती थी कि कन्हैया चोरी नहीं कर सकता लेकिन अब सब जान गयी हूँ तो तुझसे भी कोई शिकायत नहीं है। तुझे भी मैने बेटे जैसा ही माना इसलिये तेरा बुरा भी नहीं देख सकूँगी। अब जो हुआ सो हुआ लेकिन यह बात अब और किसी से मत कहना और ज़िंदगी में एक बात जरूर याद रखना कि लालच बहुत बुरी बला है बेटा, यह इंसान का सब कुछ छीन लेती है।" कन्हैया और आँटी को जाते देख रोहन सिवाय रोने के और कुछ भी न कर पाया और इस तरह अपने लालच और झूठ के कारण उसने एक बार फिर अपनी माँ को खो दिया।

निधि घर्ती भंडारी

हरिद्वार उत्तराखंड


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Nidhi Gharti Bhandari

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Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Babita Kushwaha · 4 years ago last edited 4 years ago

    👌👌👌

  • Kumar Sandeep · 4 years ago last edited 4 years ago

    संदेशपरक सृजन

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