घड़ी का अलार्म तय वक्त पर बजा तो सही मगर मैंने रोज की तरह आज भी उसे बंद कर दिया और दोबारा सो गया। आधे घंटे बाद नींद खुली तो फिर शुरू हुआ खुद को कोसने का सिलसिला। अब मशीन बनने के अलावा मेरे पास और कोई चारा ही नही रहा, एक मंझे हुये खानसामे की तरह चाय-नाश्ता और दोनों बच्चों के टिफिन एक घंटे में तैयार कर दिए और मैडम मुस्कुराते हुये कानों में बुदबुदायी । " यू आर अ परफेक्ट हसबैंड!" उसका ये तकिया कलाम मेरे लिये मानो एनर्जी बूस्टर का काम करता है। बच्चों को स्कूल छोड़ दिया और खुद पहूँच गया ऑफिस, वह भी बिल्कुल ठीक समय पर।
मैं दफ्तर में बैठकर काम के बीच में ही घर की मेड को इंस्ट्रक्शन देता रहता हूं, उस बेचारी के लिये तो मैं किसी हिटलर से कम नहीं हूं।
आज घर लौटते वक्त ऑफिस के रिस्पेशन पर कुछ जरूरी कागज़ों की जरूरत पड़ी तो जेब से कुछ घरेलू सामान की मुड़ी हुई पर्चियाँ भी निकल कर गिरीं । पहले की तरह अब रिस्पेशनिस्ट मेरी हड़बड़ी पर मुस्कुराहट की चादर नही ओढ़ती बल्कि अब वह चहेरे से सहानुभूति की गर्माहट दिखाती है ।
अब दफ्तर से लौटने पर थकान महसूस नही होती क्योंकि थकान समझ गई है,की मुझे बच्चों का होमवर्क और डिनर चुटकियों में निपटाना है।
बच्चे सो चुके हैं पर मेरी आँखों में नींद नहीं है रोज़ की तरह...उसने मेरा सर गोद में लिया और कहा।
" बहुत थक गये होंगे चलो अब सो जाओ। सब कुछ कितना अच्छे से मैनेज कर लेते हो , आफ्टर ऑल यू आर अ परफेक्ट हसबैंड"।
क्या सचमुच...? अगर मैं तुम्हारे रहते परफेक्ट हसबैंड होता तो तुम आज मेरे साथ होती.. मैं फूटफूटकर रोने लगा। पलभर में उसकी गोद तकिये में बदल गयी और वो मेरी हालत पर हमेशा की तरह मुस्कुराने लगी, सामने की दीवार पर लगे हार चढ़े फोटोफ्रेम के अंदर।
निधि घर्ती भंडारी
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
संदेशपरक
Thank u bhai
मार्मिक, बहुत ही बढ़िया लिखा है
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