"ये लो बेटा मुंह खोलो आ....." नीलम बड़े ही प्यार से अपनी दो साल की बेटी को खाना खिला रही थी। पास ही सोफे पर बैठी रंजना( नीलम की ननद जो एक दिन पहले ही मायके आयी थी) मोबाईल में व्यस्त थी। तभी नीलम की बेटी लवी अपनी तुतलाती आवाज़ में बोली," मम्मा पानी....लवी को मिच्ची लगी।"
नीलम ने बड़े प्यार से लवी को पानी पिलाया तो रंजना टोकते हुये बोली, "ये क्या सिखाया है भाभी, बड़ी देर से देख रही हूँँ। चाय, पानी, दूध, खाना अरे कौन से जमाने में हो? टी, वॉटर, मिल्क और फूड ऐसे सिखाओ, पता है अभी सीखेगी तो आगे परेशानी नहीं होगी।"
नीलम ने चौंकते हुये पूछा," परेशानी! किस बात की? मैं समझी नहीं रंजना।"
रंजना-"अरे भाभी आजकल कॉम्पिटीशन का ज़माना है, हर जगह इंग्लिश की डिमांड है। अभी से धीरे-धीरे सीखेगी तो आगे जाकर दिक्कत नहीं होगी। हिंदी को पूछता कौन है आजकल।
"बात तो तुम्हारी ठीक है रंजना लेकिन वो सब सीखने के लिये तो सारी उम्र पड़ी है पहले अपनी मातृभाषा तो सीख लें" नीलम बर्तनों को समेटते हुए मुस्कुराकर बोली।
रंजना ने कहा, "हिंदी तो अपनी भाषा है, आ ही जायेगी पर अंग्रेज़ी की प्रैक्टिस अभी से रहेगी तो फ्लूएंसी बनी रहेगी और पता है भाभी बच्चे के एडमिशन के वक्त ये भी तो एडवांटेज होता है। अब मेरे दोनों बच्चों को देखो क्या फ्लुएंट इंग्लिश बोलते हैं।"
नीलम- "हाँँ वो तुम सही कह रही हो, मगर ये भी सोचो कि यदि ये सब बातें सोचकर हम अपनी आने वाली पीढ़ी को सिर्फ अंग्रेजी सीखने पर ज़ोर देंगे तो हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी सिर्फ कहने मात्र को हमारी मातृभाषा रह जायेगी और शायद ही आने वाली पीढ़ी इस भाषा से अवगत हो पायेगी।
कम से कम हम अपनी भाषा को तो आने वाली पीढ़ी में संचरित करें" बहुत से सवाल थे नीलम की बातों में।
खुद की बात नीचे पड़ती देख रंजना बोली, " "वाह बातें तो बहुत बड़ी-बड़ी करती हो भाभी पर वो कहते हैं न "पर उपदेश कुशल बहुतेरे" आज हिंदी की बड़ी हिमायती बन रही हो तो फिर आपने इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स क्यूं किया?"सवालिया नज़रों से रंजना ने नीलम से प्रश्न किया।
नीलम -"हाँँ रंजना किया क्योंकि मेरी नयी जॉब के लिये इंग्लिश में संवाद कर सकने की योग्यता अनिवार्य थी, इसलिये आज के दौर में अंग्रेज़ी व्यवसायिक भाषा बन चुकी है इसलिये हर कोई अंग्रेज़ी सीखना चाहता है और इसमें बुराई भी कुछ नही। देखो किसी भी अन्य भाषा को सीखने या प्रयोग करने के विरोध में नहीं हूँँ।
मगर बात सिर्फ ये है कि जिस तरह अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होने से कोई व्यक्ति ज्ञानी नहीं बन जाता ठीक वैसे हिंदी भाषा के प्रयोग से आप अज्ञानी या पिछड़े हुये नहीं बन जाते हैं। ये कैसा आधुनिकीकरण जो अपनी मातृभाषा से दूर हो जाने की नसीहत देता है।"
बात तो तब बने कि हम कहीं बेझिझक बिना किसी संकोच के अपनी हिंदी भाषा को प्रयोग करे और यदि कोई दूसरा ठीक यही करे तो उस पर भी गर्व करें बजाय उसे हंसी का पात्र बनाने के......."
"भाभी मेरा ज़रूरी कॉल आ गया" कहते हुये रंजना वहाँँ से चली गयी तो इस चर्चा पर विराम लग गया। लेकिन नीलम ने फिर भी बुदबुदाते हुये कहा, "हमें अपनी भाषा के प्रयोग पर गर्व होना चाहिये न कि उसे तुच्छ समझकर उसकी अवहेलना करनी चाहिये।"
"क्यूंकि हिंदी है हम!"
निधि घर्ती भंडारी
हरिद्वार उत्तराखंड
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Very nice
उम्दा कथा
थैक्यू बबीता जी और संदीप😍🙏
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