ये ज़िंदगी कहने को तो हमारी है
पर हर बार कहाँ चलती हैं हमारे मुताबिक़!
कभी सरपट दौड़ती है बुलेट ट्रेन सी
कि साँस तक लेने की फुर्सत नहीं
और कभी ये रेंगती है धीमे-धीमे
घिस रहे होते हैं इसके साथ हम भी
कभी इतनी बोझिल और ग़मों से भरी
कि हाथ छुड़ाना भी चाहो
तो ये ढीठ कसकर थाम लेती है
कहीं जाने नहीं देती
और कभी इतनी खुशियों से भर जाती है
मानों देख रहे हो कोई हसीन ख्वाब
हम खुशियाँ बटोरते इत्मिनान से
मुसकुराना शुरू ही करते हैं कि
ये धोखेबाज़
एक झटके में हाथ छुड़ाकर चल देती है।
बदमाश ज़िंदगी सुन
बेशक तू पक्की खिलाड़ी है
और खेलती है हमारे साथ
पर ज़रा तो ईमानदारी रख
वरना हमें नहीं खेलना तेरे साथ.
चीटिंगखोर ज़िंदगी...!!
निधि घर्ती भंडारी
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
अच्छी कविता ।
सच! Cheating करती है ये जिन्दगी कभी कभी 😊 प्यारी सी कविता
यही तो करती है ज़िंदगी
Please Login or Create a free account to comment.