तकरीबन आधी रात को बंटी ने झिझकते हुये स्टडी रूम का रुख किया। की-बोर्ड पर तीव्रता से दौड़ती अंगुलियों का स्वर, वह दरवाज़े के बाहर से भी सुन पा रहा था। उसने दरवाज़ा भीतर की तरफ धकेला और अपने पिता को काम में व्यस्त देखकर मेज से कुछ ही दूरी पर ठिठक गया।
"तुम सोये नहीं अभी तक, क्या कल सुबह स्कूल नहीं जाना?" स्वर में कठोरता लाते हुये पिता ने प्रश्न किया। उनकी अंगुलियाँ की-बोर्ड पर अब भी थिरक रही थी और नज़रें लैपटॉप की स्क्रीन पर टिकी हुई थी।
"डैड...मुझे आपसे कुछ कहना था!" अंगुलियाँ अब भी गतिशील थी और बंटी के पिता अतिव्यस्त।
"डैड अगले संडे फादर्स डे पर मेरे स्कूल में एक फंक्शन रखा गया है जिसमें मेरी भी परफॉर्मेंस है। मैम ने कहा है कि सभी बच्चों के पेरेंट्स को फंक्शन में जरूर आना है तो प्लीज़ आप भी....."
पिता हमेशा की तरह खींजते हुये बोले-" बेटा आपको तो पता है न कि मेरे पास सांस लेने तक की फुर्सत नहीं है। मैं आपके प्रिंसिपल सर से फोन पर बात कर लूँगा, कोई आपसे कुछ नहीं कहेगा।"
स्कूल डायरी पर दस्तखत कर बंटी के पिता दोबारा काम में मशरूफ हो गये। बंटी अपने दूसरे हाथ में, पिता के लिये बनाया कार्ड लेकर चुपचाप खड़ा रहा परंतु पिता के लिये मानो कोई वहाँ था ही नहीं।
"डैड... मॉम ठीक कहती थी आप इंसान नहीं रोबोट हैं...इमोशनलेस!!!" भरी आंखों से बंटी ने दरवाज़े का रुख किया और की-बोर्ड पर थरकती अंगुलियाँ एकाएक बेजान सी पड़ गयी।
निधि घर्ती भंडारी
हरिद्वार उत्तराखंड
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
उत्कृष्ट सृजन
वाह! सही कहा भावनायें खो ना जाए बस वही तक खुद को उलझाए
Please Login or Create a free account to comment.