आज़ादी का दिन करीब आते ही बिट्टो के दिल में भी बाकियों की ही तरह देशभक्ति की बयार बहने लगती थी। सब कुछ तीन रंग में रंगा दिखाई पड़ता, जहां भी नज़र जाती बस आज़ादी का समा बंधा नज़र आता। बचपन से ही देश पर मर मिटने के ख्वाब उसने भी देखे थे पर शादी के बाद से तो जैसे उसके लिये आज़ादी के कोई मायने ही न रह गये थे।
बस घर में नज़रबंद, बाहर कहीं भी आने जाने की इजाज़त नहीं थी। कहीं भी जायेगी तो अपने पति परमवीर के साथ, जब भी घर से दारजी या पापाजी, वीर जी या कोई भी और फोन करता तो कह दिया जाता कि बिट्टो पति के साथ घूमने गयी है, नई-नई शादी है अब न घूमेगी तो कब? बस...सबको लगा कि बिट्टो इतनी खुश है अपनी शादी से कि भूल गयी सबको। धीरे-धीरे सभी साथी सहेलियाँ छूटते चले गये।
ससुराल में परिवार बहुत बड़ा न था, उन दोनों पति-पत्नी के अलावा घर में सास और ननद ही थे मगर वे दोनों भी हमेशा चुप-चुप ही रहती, डरी-सहमी सी। घर में केवल परमवीर का एकछत्र राज था, उसकी मर्ज़ी के बिना तो घर में एक पत्ता भी न हिलता।
आज भी याद है बिट्टो को जब उसने गली के बीच ही ठेले वाले को रुकवाकर चाट और पानी-पूरी खायी थी, तब परमवीर ने जून की भरी गर्मी में उसे कमरे में बंदकर वहाँ की बिजली काट दी थी। रातभर कमरे में न हवा थी और ना ही रौशनी।
छोटी-छोटी गलतियों पर परमवीर पागलों सा चीखने चिल्लाने लगता था, सामान तोड़ने फोड़ने लगता था और बिट्टो समझ न पाती थी कि आखिर कैसा इंसान है परमवीर!! रात भर बिस्तर पर जिंदा लाश सी बिछी रहती थी बिट्टो, अपने पति की मनमानियों और ओझी हसरतों के खातिर और वह निर्मोही सवेरे उठकर मुंह मोड़कर चल देता था।
कुछ समय बाद ननद की भी शादी हो गयी जाने तो बिट्टो और भी ज्यादा अकेली पड़ गयी थी। सास के तो मानों मुंह में जबान ही न थी, वह हर वक्त खुद में ही खोयी हुयी सी रहती थी।
इन दो सालों में बिट्टो लगभग चार-पांच बार बच्चा साफ करवा चुकी थी क्योंकि परमवीर बच्चा नहीं चाहता था मगर अब पानी सिर से ऊपर जाने लगा था। आखिरकार बिट्टो ने सास बहू के बीच की इस चुप्पी को तोड़कर अपनी सास कुलजीत को सब कुछ बता दिया। आंखों से आंसू पोछती कुलजीत फफककर रो पड़ी, "वह बिल्कुल अपने बाप पर गया है बिट्टो, बिल्कुल अपने बाप पर। मुझे माफ कर दे मेरी बच्ची यह मेरी भूल थी कि मै सोचती थी वह शादी के बाद बदल जायेगा पर यह न सोचा कि इंसान बदलते हैं हैवान नहीं। मै कितनी गलत थी!!" दोनों एक दूसरे के गले लगकर दुख को हल्का कर ही रही थीं कि परमवीर घर आ गया और कुलजीत ने आँसू पोछकर फिर वही खामोशी ओढ़ ली।
बिट्टो भांप चुकी थी कि वह एक एेसे दलदल में आ गिरी है जहां से शायद अब कोई उसे नहीं बचा सकता। आज रोटी सेंकते वक्त भी वह इस कदर गहरी सोच में डूबी हुई थी कि खुद का हाथ जला बैठी। सास ने रात का खाना न लिया, शाम से ही कमरे में बंद हो गयी।
रात के वक्त अचानक ही कमरे में आकर कुलजीत परमवीर से बोली, "आज बिट्टो को मेरे पास भेज दे, तबियत ठीक नहीं लग रही।" कुछ देर तो परमवीर दोनों को आँखे तरेरता रहा। " सो लेने दे बेटा, क्या पता कल का सूरज देखूँ न देखूँ", भरी आँखों से कुलजीत बेटे परमवीर से मिन्नतें करने लगी तो वह आखिरकार मान ही गया।
बिट्टो जैसे ही बिस्तर पर लेटी, कुलजीत उसे थपकियां देने लगी, कब नींद आ गयी बिट्टो को पता ही न चला। सोने से पहले कुलजीत ने बिट्टो का माथा चुमते हुये कहा," कल तेरी सारी परेशानियां खत्म हो जायेगी, मेरी बच्ची देखना।"
अगले सवेरे पांच बजे उठकर बिट्टो परमवीर के लिये चाय नाश्ते की तैयारी में जुट गयी, चूंकि स्वतंत्रता दिवस था तो उसे जल्दी कॉलेज के लिये निकलना था। चाय लेकर जब बिट्टो कुलजीत के कमरे में आयी तो उसने बताया कि वो जल्दी से अपना सामान पैक कर ले, क्यूंकि उसके भैय्या उसे लेने आ रहे हैं।
" पर मांजी वीर जी एेसे अचानक?? " बिट्टो ने कुलजीत से सवाल किया।" बेटा तेरे दारजी बहुत बीमार है, कल रात फोन आया था तेरे घर से। देर न कर तू तैयारी कर , यहां कि फिक्र न कर मैं सब संभाल लूंगी", कुलजीत बिट्टो को ढांढस बंधा ही रही थी कि अचानक धड़ाम की आवाज़ के साथ परमवीर की चीख उन दोनों के कानों पर पड़ी। वहां जाकर पता चला कि वो सीढ़ियों से फिसल गया है। डॉक्टर साहब ने बताया कि पैर में मोच आ गयी है, घबराने की कोई बात नहीं।
कुछ देर बाद ही बिट्टो का भाई वहां आ पहुंचा, जिन्हें देखकर बिट्टो फूट-फूटकर रोते हुये कहने लगी, " वीर जी क्या हो गया दार जी को? " बिट्टो के भाई रणबीर ने कहा," बिट्टो जल्दी कर दार जी के पास अब ज्यादा वक्त नहीं बचा है बार-बार बस तुझे ही याद कर रहे हैं।" बिट्टो की सास ने उससे कहा," देख ये रोने धोने का समय नहीं है, जा जल्दी सामान बांधकर जाने की तैयारी कर।"
ये सब देखकर परमवीर गुस्से से लाल-पीला हो रहा था, एक तो ये पैर का दर्द और ऊपर से बिट्टो का मायके जाना उसे बिल्कुल रास न आ रहा था। एेसा होना लाज़मी था क्यूंकि आज से पहले बिट्टो मायके सिर्फ दो बार गई थी, वह भी परमवीर के साथ। केवल 2 दिन के लिए लेकर जाता और अपने साथ ही उसे वापस लेकर आता और रणवीर के साथ तो उसका छत्तीस का आंकड़ा था दोनों ही एक-दूसरे को पसंद नहीं करते थे।
"लेकिन मां बिट्टो कैसे जा सकती है? देख नहीं रही तू मेरे पैर में मोच है। पति यहां बिस्तर पर पड़ा है और ये महारानी मायके जा रही है घूमने? " परमवीर ने सवाल दागा। "नहीं बेटा बिट्टो घूमने नहीं, अपने दार जी से मिलने जा रही है। यहाँ का क्या है, यहाँ मैं हूँ तेरी देखभाल के लिए और एक माँ से अच्छी देखभाल भला कौन कर सकता है। बस अब चुप कर एक शब्द और नहीं, मैंने कह दिया तो कह दिया बिट्टो मायके जा रही है बस।", दृढ़ता से कुलजीत ने अपनी बात रखी।
कुछ ही देर में बिट्टो सारा सामान लेकर नीचे आ गई, कुलजीत के पैर छुये पर परमवीर की तरफ देखा तक नहीं। परमवीर इस अनदेखी से जल भुन गया और मन ही मन बस यही सोचने लगा, "मायके से लौट कर आने दो इस साली को खाल न उधेड़ दी इसकी तो नाम बदल दूंगा अपना।
बिट्टो ने जैसे ही घर की देहरी से बाहर कदम रखा, कुलजीत की आंखें नम हो गई तो बिट्टो उसके गले लग कर बोली, "क्या हुआ मां रो क्यों रही हैं आप? हमेशा के लिए थोड़े ही न जा रही हूं, हफ्ता-दस दिन में जैसे ही दार जी को आराम लगेगा मैं लौट आऊंगी, आप चिंता ना करना।
" उसकी बातें सुनकर कुलजीत बोली, बेटा नर्क है यह, नर्क ! यहां कभी लौटकर मत आना। मेरे बस में जितना था मैंने कर दिया, बस मोच ही आयी है हफ्तेभर में चंगा हो जायेगा। तेरे दार जी को कुछ नही हुआ बिट्टो! तेरा भाई तुझे सब समझा देगा। हो सके तो तुम दोनों अपने घरवालों को समझाना और जल्द ही तलाक के कागजात तैयार करके यहां भिजवा देना। हाथ जोड़कर विनती करती हूं बिटिया जा! अब तू आजाद है, लौटकर दोबारा यहां कभी मत आना।" कहते हुए कुलजीत फूट-फूटकर रो पड़ी।
उसके मुंह से यह बातें सुनकर बिट्टो की आंखें भर आई समझ ना आया उसे कि कैसे शुक्रिया अदा करें वह कुलजीत का। बस गले लगकर सिर्फ शुक्रिया ही कह पाई पर उसका दिल जानता था कि कुलजीत उसके लिए आज भगवान से भी बढ़कर है।
अलविदा कहकर कुछ कदम चली तो वहां पड़े एक कागज़ के तिरंगे पर बिट्टो की नजर गई जिसे आजादी का जश्न मनाने के बाद लोगों ने यूं ही सड़क पर फेंक दिया था लेकिन बिट्टो उसे उठाकर कभी माथे से लगाती तो कभी सीने से....।मानो दिल ही दिल में अपनी आज़ादी के लिये प्रण कर रही हो और आज़ादी के इस प्रतीक को उसने अपने पास रख लिया।
गेट पर खड़ी कुलजीत की आँखों में आँसू और होठों पर मुस्कुराहट थी।
निधि घर्ती भंडारी
हरिद्वार उत्तराखंड
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
मेरी बहुत पसंदीदा कहानी है ये
जबरदस्त लिखा👏👏
आपकी कलम को नमन
यार इतना परफेक्ट कैसे लिखती हो 🙈, एक एक शब्द और वाक्य अपनी जगह पर.. बहुत ही खूबसूरत कहानी
बहुत ही बढिया लिखा
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