बंटी और उसका परिवार कुछ समय पहले ही लड्डूपुर कॉलोनी में शिफ्ट हुये। यह शहर की सबसे साफ-सुथरी और सुंदर कॉलोनी है। वैसे तो बंटी को अपना नया घर बहुत पसंद आया लेकिन फिर भी उसका मन यहाँ नहीं लग पा रहा था क्योंकि यहाँ उसका एक भी दोस्त नहीं है। उसके सारे दोस्त तो वहीं रह गये जहाँ वह पहले रहा करता था। स्कूल तक तो सब ठीक रहता लेकिन वापस आते ही बंटी फिर उदास हो जाता था। वह हर वक्त यही सोचता कि किसके साथ खेले? मम्मी घर के कामकाज में बिज़ी थी और पापा ऑफिस के कामों में।
कुछ बच्चे शाम के वक्त कॉलोनी के पार्क में खेलते थे। मम्मी भी बंटी को पार्क में जाकर खेलने को कहती थी लेकिन वह दो कारणों से बाहर नहीं जाना चाहता था। एक तो झिझक के मारे क्योंकि वह किसी को जानता नहीं था और दूसरा टॉमी के डर के कारण। टॉमी एक स्ट्रीटडॉग था, जो लड्डूपुर के सभी लोगों का दुलारा था। टॉमी की माँ रूबी, एक रोड एक्सीडेंट में मर गयी थी। उस वक्त वह सिर्फ़ तीन महीने का था। तबसे लड्डूपुर की गलियाँ ही उसका घर बन गईं थी।
गलियों में घूमते वक्त हर कोई टॉमी को कभी बिस्किट तो कभी खाने की और चीज़ें देता रहता था लेकिन बंटी को वह बिल्कुल पसंद नहीं था।
टॉमी के गहरे काले रंग और हष्ट-पुष्ट होने के कारण बंटी टॉमी से काफी डरा हुआ रहता था। बंटी जब सवेरे स्कूल जाता था तो टॉमी उसे देखकर पूँछ हिलाने लगता और उसके पीछे-पीछे उसकी स्कूल वैन तक जाता। वहीं जब बंटी स्कूल से वापस लौटकर आता तब टॉमी फिर से पूँछ हिलाकर उसका अभिवादन करता और घर के गेट तक उसके पीछे आता।
यह सब देखकर बंटी बहुत सहमा हुआ रहता था कि कहीं टॉमी किसी दिन उसे काट ही ना ले। एक दिन सवेरे-सवेरे जैसे ही बंटी स्कूल जाने के लिये अपने घर के गेट से बाहर निकला उसे टॉमी वहीं खड़ा हुआ दिखाई दिया। बंटी स्कूल बैग टाँगे अपनी वैन की तरफ जा ही रहा था कि अचानक उसे अपने पैर पर टॉमी के शरीर की छुअन महसूस हुई, घबराकर उसने अपनी पानी की बोतल टॉमी के मुँह पर जोर से दे मारी। टॉमी क्याऊँ-क्याऊँ करते हुए वहाँ से भाग गया। आज जब बंटी स्कूल से लौटकर आया तो टॉमी ने दूर से ही पूँछ हिला दी लेकिन उसका पीछा नहीं किया। बंटी अपनी बहादुरी पर बहुत खुश हुआ। उसने यह सोच लिया था कि जब भी टॉमी उसके पीछे आएगा तो वह ठीक इसी तरह उसे मारेगा।
एक दिन स्कूल से वापस लौटते वक्त, रास्ते में रखे एक बड़े पत्थर से बंटी का पैर टकरा गया। वह गिर पड़ा और रोने लगा। उसके घुटने से खून बह रहा था। यह सब वहाँ खड़ा टॉमी देख रहा था। वह दौड़कर बंटी के घर के सामने वाली दुकान से, दुकानदार को साथ ले लाया। अंकल ने बंटी को गोद में उठाया और उसके घर तक छोड़कर आये। बंटी की मम्मी ने उसकी चोट पर मरहम पट्टी की।
अचानक ही बंटी की मम्मी बोल पड़ी, "भला हो दुकान वाले भैया का वह तुम्हें उठाकर घर ले आये।" तब बंटी ने सोचा कि वह तो बैठा रो रहा था तो फिर दुकान वाले अंकल को कैसे पता चला कि वह गिर गया है?
अरे हाँ !! टॉमी ही तो भागकर अंकल के पास गया था और जब वह वापस आया तब दुकान वाले अंकल उसके साथ थे। बंटी को अपने द्वारा किए गए व्यवहार पर बहुत दुख हो रहा था।
जब तक चोट ठीक नहीं होती बंटी को घर पर ही रहना था। ऐसे में वह रोज़ाना टॉमी को बिस्किट-पानी और खाना दिया करता। धीरे-धीरे उसे टॉमी अच्छा लगने लगा था। अब वे दोनों शाम के वक्त पार्क में दूसरे बच्चों के साथ खेलते और दोनों में बहुत गहरी दोस्ती हो गयी थी।
निधि घर्ती भंडारी
हरिद्वार उत्तराखंड
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.