नाश्ते में स्वादिष्ट मिठाई खाने के बाद धीमी आवाज़ में लड़के वाले जब कहते हैं, चलिए सब कुछ तो ठीक है दहेज में क्या-क्या दीजियेगा ये बताइये? पता है तब इस प्रश्न का जवाब देने वक्त लड़की के पिता अवाक रह जाते हैं, अंदर से पूरी तरह टूट जाते हैं। पर लड़की के पिता के तन-मन के दर्द को महसूस करना भी नहीं समझते हैं उस वक्त लड़केवाले। तब एक बात समझ आती है कि दुनिया में हर चीज़ तो बदल गई है पर आज भी कुछेक लोगों के अंदर कोई बदलाव नहीं आया है।
"हाथ सीता का राम को दिया जनक राजा देंगे और क्या?" विदाई के वक्त इस गीत को सुनने के बाद भी लड़के के परिवारवालों का दिल नहीं पसीजता है। जनक राजा अर्थात लड़की के पिता अपनी लाडली रानी को जीवन भर के लिए लड़के वालों को सौंप देते हैं। इससे बड़ा त्याग और क्या होगा? फिर भी दहेज के रुप में सुख सुविधाओं के साधन लड़की के पिता से लेना, सरासर दानवता ही है।
बेटी की शादी अच्छे घर में हो इसलिए एक-एक रुपया संजोकर रखते हैं एक पिता। भले ही ख़ुद की ख्वाहिश को दफ़न ही क्यों न करना पड़े पर बेटी अच्छे घर में जाए इसलिए पिता हर मुश्किल सहन कर लेते हैं। पैसा जुटाते-जुटाते तन ही नहीं मन भी टूट जाता है पूरी तरह एक पिता का। फिर भी वर पक्ष का दिल पिघलने का नाम नहीं लेता है।
दहेज की प्रथा का अंत हो,इसलिए लड़की वालों को भी सार्थक कदम उठाना होगा। लड़की को खूब पढ़ाना होगा, इस काबिल बनाना होगा लड़की को कि लड़के वाले का मुँह ही न खुले दहेज माँगने के लिए। अच्छे रिश्ते पैसे के बलबूते कभी भी नहीं खरीदे जा सकते हैं। और जो रिश्ते पैसों के बल पर निर्मित किए जाते हैं वहां प्रेम,स्नेह अपनत्व नहीं पनप सकता है। आपकी लाडली जहाँ जाए वहाँ उसे भरपूर स्नेह मिलना चाहिए, यह तभी होगा जब आप सही घर का चयन करेंगे, न कि ऐसे घर का जिनके लिए धन महत्वपूर्ण है इंसान नहीं।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
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इस कुप्रथा का अंत सिर्फ तभी हो सकता है जब हर एक लड़का खुद अपनी शादी दहेज के बिना करने की ठाने |क्यूँकी लड़कियों को पढ़ाया तो जा ही रहा है पर उसका अंतिम लक्ष्य भी अच्छी शादी ही हो गया है |
सही कहा आपने मैम
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