2020 तू इतना क्यूं रुठा है रे?
तेरे आगमन से पूर्व हमने
क्या-क्या नहीं किया था
तेरे स्वागत में कोई कमी नहीं छोड़ी थी हमने
जिस तरह सूर्योदय से पूर्व
सूर्य की पहली किरण को देखने की बेसब्री
रहती है सभी के मन में
ठीक उसी तरह तेरे आगमन
का इंतजार था हम सभी को।।
पर जब से हुआ है तेरा आगमन
देख तो सही तू हर ओर
कुछ-न-कुछ अनहोनी ही घटित हो रही है
हर ओर अशांति-ही-अशांति है व्याप्त
निर्धन की आँखों से अश्रु की नदियां बह रही हैं
भूख से बिलबिला रहा है असहाय परिवार सड़कों पर
ज़िंदगी बदल ही गई है पूरी तरह
हर ओर सन्नाटा पसरा है
पता नहीं 2020 तू किस बात पर रुठा है।।
जब से हुआ है तेरा आगमन
मन में मची है एक अज़ब उथलपुथल
चहुंओर से बुरी ख़बरों को सुनकर हृदय है स्तब्ध
ज़िंदगी तो परीक्षा लेती ही थी पूर्व में भी
पर इन दिनों तो हर पल,हर क्षण
हो रही है हमारी कड़ी परीक्षा
तेरे रुठने की वज़ह भी तो हमें मालूम नहीं है
2020 तू अब कर भी दे माफ हमें
अब मान भी जा तू कर दे माफ हमें।।
2020 अब मत तड़पा तू दीन दुखियों को
उनके दामन में भर दे तू ख़ुशियाँ
ख़ुशहाली की किरण बिखेर दे तू अब हर ओर
हमारी गलतियों को भूल जा तू
और हमें शीघ्रातिशीघ्र कर दे माफ
ज़िंदगी की परीक्षा देते-देते
मन हो चुका है बहुत उदास
इतना भी मत रुठ हम सभी से
अब मान भी जा तू।।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
Comments
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वाह बहुत बढ़िया
आपकी कलम को सलाम है भाई
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