मैं आश्चर्य करता हूँ

I wonder

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Kumar Sandeep
Kumar Sandeep 26 Oct, 2020 | 1 min read
A wonderful poem

मैं आश्चर्य करता हूँ

यह देखकर कि

किस तरह पेड़ एक जगह रहकर ही

हम इंसानों को बहुत कुछ देता है

खाने के लिए स्वादिष्ट फल एवं जीने के लिए ऑक्सीजन।।

 

मैं आश्चर्य करता हूँ 

यह देखकर कि

माँ धरती कितना दर्द सहन करती है

इंसान कितना सताता है धरती माँ को

फिर भी धरती माँ हम से कुछ भी नही कहती है।।

 

मैं आश्चर्य करता हूँ

यह देखकर कि

एक गरीब सहन करता है कितना कुछ

गरीबी का दर्द, तो कभी ज़िन्दगी से आँसू

फिर भी लड़ता है एक गरीब ज़िन्दगी से डरकर नहीं डटकर।।

 

मैं आश्चर्य करता हूँ 

यह देखकर कि

किस तरह एक माँ संभालती है पूरे परिवार को

ख़ुद सहन करती है कष्ट पर

परिवार के हर सदस्य को ख़ुश रखती है।।

 

©कुमार संदीप

मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित

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Kumar Sandeep

Kumar_Sandeep

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Resmi Sharma (Nikki ) · 4 years ago last edited 4 years ago

    वाहहह सुंदर लिखा

  • Kumar Sandeep · 4 years ago last edited 4 years ago

    धन्यवाद आपका

  • Sonnu Lamba · 4 years ago last edited 4 years ago

    Lovely

  • Kumar Sandeep · 4 years ago last edited 4 years ago

    Thanks

  • Anita Bhardwaj · 4 years ago last edited 4 years ago

    बहुत सुंदर

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    धन्यवाद आपका

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