हैवान की हैवानियत

हैवानियत की हद पार कर इंसानियत की परिभाषा को शर्मसार करने वालों के नाम चंद तीखे शब्द।

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Kumar Sandeep
Kumar Sandeep 11 Dec, 2020 | 1 min read

इंसान!

अरे! मैं भी न

अक्ल का मारा हूँ

तुम्हें इंसान क्यों कह रहा हूँ

तुम इंसान कहलाने के काबिल हो कहाँ

हाँ,यदि तुम्हें हैवान कहूं तो

बिल्कुल सही रहेगा

तुम्हें इंसान कहना

किसी भी दृष्टिकोण से

उचित नहीं है।।


इंसान!

कभी भी नहीं करता है नारी की इज़्ज़त

के साथ खिलवाड़

नन्ही नाजुक-सी पापा की परी को भी

तुम नहीं छोड़ते हो

बेहोशी की हालात में छोड़

इज़्ज़त कर देते हो शर्मसार

इसलिए तुम्हें राक्षस कहना शायद उचित होगा

शायद राक्षस भी कहना उचित नहीं

राक्षस भी इस तरह का

घोर जघन्य अपराध

नहीं कर सकते हैं कभी।।


ईश्वर ने शायद भूलवश

तुम्हें भेजा होगा

धरा पर मनुष्य के रूप में

ईश्वर भी स्वयं द्वारा लिए गए

इस फैसले पर पछताते होंगे

हैवानियत की हद पार कर

इंसानियत की परिभाषा को

धूमिल करने वाले

तुम्हें इंसान किसी भी कीमत

नहीं कहा जाएगा कभी।।


स्मरण रखना हैवानियत की हद

पार कर, नारी की अस्मत के संग

खिलवाड़ करने की सजा

तुम्हें एक दिन निश्चित ही मिलेगी

उस दिन तुम चाहकर भी

ख़ुद को नहीं बचा पाओगे

जब जीवनकाल पूर्ण कर

ईश्वर की शरण में जाने की

बारी आएगी तब

तुम्हें मौत भी अपने संग

नहीं ले जाएगी जल्द

मौत तुमसे आसानी से नहीं मिलेगी

तुम्हें मौत बहुत तड़पाएगी

हाँ, सचमुच उस दिन

तुम्हें अपनी असल औकात नज़र आएगी।।

©कुमार संदीप

मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित

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Kumar Sandeep

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Comments

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  • prem shanker · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत सुंदर रचना संदीप जी, शब्द चयन भी उम्दा है! बेहतरीन लाजवाब...!

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    धन्यवाद भाई जी

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