हर साल कोमल भाई को राखी बांधने जाती थी। पर, इस बार ज़िंदगी मानों रुठ चुकी थी कोमल से। बाढ़ का पानी यत्र-तत्र अपना पैर पसार चुका था। रक्षाबंधन के सुबह में अनमोल अपनी बड़ी बहन से फोन कॉल पर बात करता है। अनमोल कहता है, "दी! इस बार आप नहीं आ रही हो, बिल्कुल ही अच्छा नहीं लग रहा है। फिर से एक वर्ष बाद यह पुनीत पावन दिन आएगा। ज़िंदगी जिस तरह बदल रही है पता नहीं कब क्या होगा। काश! तुम आ पाती दी हम रक्षाबंधन का त्यौहार ख़ुशी-ख़ुशी मनाते।" कोमल कहती है, "भाई! हम सब ईश्वर की मर्जी के समक्ष बेबस व लाचार हैं। ऐसा मत कहो भाई, कुछ नहीं होगा मुश्किल की भयावह घड़ी भी बीत जाएगी एक दिन निश्चित-ही। अगले वर्ष राखी के दिन अवश्य भाई की कलाई पर राखी बांधने आऊंगी। भले मैं इस वर्ष राखी के दिन भाई की कलाई पर राखी नहीं बांध पाईं। पर रब से इतनी ही प्रार्थना करती हूँ आज इस घड़ी कि मेरे भाई के जीवन में ख़ुशियाँ-ही ख़ुशियाँ हो। मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ रहेगा भाई।" इतना कहते ही बहन की आँखों से निकलने आंसू बहन की कलाई पर टपकने लगे व वहीं अनमोल अपनी आँखों के आंसू को हाथ से पोंछते हुई कहता है, "दी! आप अपना ख़्याल रखना।" सादर प्रणाम दी!
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Happy rksha bndhan BHAI, bht pyra likha
हार्दिक आभार सर
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