आज भिंसरे-भिंसरे जब देखली
किसान के आँख से आँसू बहवते
जाइत खेत के तरफ
तब हमरो आँख से
निकले लागल आँसू
ओकर दुख देखकर लगइत रहे कि
धरती माई भी रो देत र
आसमान भी रोए लागत र
उ किसान रहे परेशान, पर
मन में रखले रहल र उ अटूट विश्वास
पाँव बढ़ले जाइत रहे मंजिल के तरफ
जब ओकर दर्द देखल न गेल हमरा से
तब पूछली उ किसान से
कल्ला रो रहल छा चच्चा
कि भेलो हम कुछ मदद
कर सकोछिओ त बोलअ
तब कहलक उ किसान हमरा से
अरे! बउआ तू बारअ बहुत छोट
पर तू कहलअ ह आज बड़का बात
आज तक कोई न देकल हमर साथ
जिनगी के हर दुख लड़े के परल हमरा ख़ुदे
पर आज जब तू पूछ लेला
हमर दुख के वजह त
अइसन लागअता कि
हमर सब दुख दूर हो गेल
हम किसानन के दुख से
त कोनो के कोई मतलबे न हइ रे बउआ
बउआ तू मत रोअ, तू काहे रोअइछअ
हमरा त रोए के आदत बा बउआ
जब जिनगी के दरद बर्दाश्त न होइत बा
तब आँख से लोर गिरे लगेला अपने आप
जा तू स्कूल जा रे बाबू
हमहूँ आज लेट हो गइली
जल्दी से खेत में जाए के परि हमरा के।।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
Comments
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वाह
धन्यवाद दी आपका🙏🙏
वाह बहुत अच्छा प्रयास
हृदय से आभार आपका
हृदय से आभार आपका
बहुत अच्छा लिखलहु हन, अइसहीं लिखते रहियह।
बहुत खूब उम्मीद है इस भाषा में और अधिक पढ़ने को मिलेगा
धन्यवाद प्रतीक भैय्या
धन्यवाद दी
Bahut bariya likha hay
बहुत बहुत आभार माते
बहुत बढ़िया लिखा संदीप
धन्यवाद दी
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