रावण की व्यथा

Ravan ki vyatha

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Kumar Sandeep
Kumar Sandeep 25 Oct, 2020 | 0 mins read
Ram Ramayan Dharm Ravan

मैं जानता हूँ

सारा जगत यह जानता है कि

मैंने माँ सीता को भगवान राम से दूर कर

किया था अपराध बड़ा

अहंकार से वशीभूत था मैं

मेरे मन में मैं था समाया

तो क्या इस गुनाह की सजा

मनुज तुम इस तरह दोगे

हर वर्ष रावण का पुतला

जलाकर आखिर क्या देना

चाहते हो संदेश जगत को।।

अरे! मनुज

जलाना ही है कुछ तो

अपने मन से अहंकार जला दो

है मेरा अनुभव कहता

जिसके मन में है ख़ुद को सर्वश्रेष्ठ

समझने का भ्रम

उसका है सर्वनाश सुनिश्चित एक दिन।।

अरे! मनुज

हर बार पुतला निर्मित कर, दहन कर

मत यूं मुझे सताओ तुम

मुझमें भी थी खूबियाँ कई

उन खूबियों को भी तो आत्मसात करो

हाँ, मेरी ज़िंदगी से भी सीखो तुम।।

अधर्म के मार्ग पर चलोगे जब कभी

तुम्हारी ज़िन्दगी में मुश्किलें आएंगी अनगिनत

सदा चलो धर्म के मार्ग पर

मन से मैं की भावना मिटा दो सर्वदा के लिए

सकारात्मक विचार मन में भरो

नकारात्मक विचारों से नाता तोड़ो।।

©कुमार संदीप

मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित

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Kumar Sandeep

Kumar_Sandeep

Comments

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  • Student · 4 years ago last edited 4 years ago

    Bht acha likha h bhai....., such Surj ki trh hota h... Vaisa such likha h... Bht hi hrdy ko chuney vali kvita 💐👍🙏👌👌👌👌

  • Student · 4 years ago last edited 4 years ago

    🙏👍💐💐👌👌👌💰💰🎊🎉🎓🎓🎓🎓🎓

  • Kumar Sandeep · 4 years ago last edited 4 years ago

    Thanks a lot

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